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22 Dec 2024 · 1 min read

लिखूँ दो लब्ज वही चुभ जाते हैं

लिखता हूँ तो चुभती है बात
होता है क्यों जाने ह्रदय आघात
कलम के मायने क्यों बदल जाते हैं
लिखूँ दो लब्ज वही चुभ जाते हैं

मैं तो बस कलम चलाता हूँ
भला किसको मैं तीर चुभाता हूँ
मेरे शब्दों को दिल पर ले जाते हैं
लिखूँ दो लब्ज वही चुभ जाते हैं

मैं मन के भाव पिरोता हूँ
बैठ कर शब्दों को सॅजोता हूँ
पढ़ने वाले बस कयास लगाते हैं
लिखूँ दो लब्ज वही चुभ जाते हैं

मैं यूँ तो बहुत सोचता हूँ
कलम को कई दफा रोकता हूँ
कल्पना किए चित्र उकेरे जाते हैं
लिखूँ दो लब्ज वही चुभ जाते है

मैं तो यूँ ही कलम उठता हूँ
शब्दों से सिर्फ दिल बहलाता हूँ
‘V9द’ हर बात के मुद्दे बन जाते हैं
लिखूँ दो लब्ज वही चुभ जाते हैं

स्वरचित
V9द चौहान

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