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18 May 2024 · 1 min read

दरख्त

दरख्त हो गये हम ,
बहुत ही सख्त हो गये हम ,
चेतना की जड़े बेहद गहरी हो गई ,
अनुभव की पपड़ियां चढ़ते औए झड़ते
उम्र की शाख पर बढ़ते और फैलते ,
कभी चटक के खिल जाते ,
कभी मुरझा के विखर जाते.
किन्तु भीतर सब वैसा का वैसा ही है ,
जीवनरस से लबालब भरा
नूतन, अहलादित, कोमल ,
सुकून से भरी पसरी घनी घनी छाँव
हरीतिमा लपेटे भीगे भीगे लिबास में
मन को समेट लेते ,
एकान्त किन्तु सन्नाटे में शोर लिए
साँसे गहरी और गहरी होते चले गये
भोर की उनींदी सिरहाने में
टूटते ख्वाब के ढेरों शबनमी अहसास में
अनगिनत बदलते मौसम को झेलते
बहुत ही सख्त हो गये हम
हाँ। अब दरख्त हो गये हम ।
पूनम समर्थ (आगाज ए दिल)

Language: Hindi
1 Like · 162 Views
Books from पूनम 'समर्थ' (आगाज ए दिल)
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