स्त्री: : अनकही कहानी

हँसती है, खिलखिलाती है,
दुनिया की रोशनी बन जाती है।
पर दिल के कोने में चुपचाप,
कुछ दर्द पुराने छुपाती है।
सबकी उम्मीदों का आसमान,
घर की रोशनी, रिश्तों की जान।
पर खुद के सपनों की मिट्टी,
हर दिन बनती, हर दिन बिखरती।
कभी सवालों में उलझी रही,
कभी ज़िम्मेदारियों में पिघली रही।
कभी किसी ने जाना ही नहीं,
उसकी आँखों में कितनी नदी बही।
पर जब वो खुद को पहचान ले,
तो आसमान भी झुक जाता है।
जो दुनिया कल तक रोक रही थी,
वो उसके क़दमों में आ जाता है