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11 Apr 2024 · 1 min read

कभी-कभी कोई प्रेम बंधन ऐसा होता है जिससे व्यक्ति सामाजिक तौर

कभी-कभी कोई प्रेम बंधन ऐसा होता है जिससे व्यक्ति सामाजिक तौर पर तो मुक्त दिखाई देता है परन्तु वास्तविकता में मानसिक और आत्मिक दृष्टि से मुक्त
नहीं हो पाता…..बल्कि समय के साथ मानसिक गहराइयाँ बढ़ती जाती है…. बंधन का मुक्त होना तय है…. यह प्रकृति प्रदत्त नियम है… जो पूर्णतया अटल है…..तो समय उसे आपके समक्ष पुनः अवश्य प्रस्तुत करेगा… सतर्क रहें… इस बार समय आपको मानसिक एवं आत्मिक रूप से मुक्त करने हेतु बाध्य है… अंत्योगतवा मोक्ष ही प्रेम की प्रकाष्ठा है…
– देवश्री पारीक ‘अर्पिता’

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