क्या यही कारण है दूर जाने का?

गलतफहमियों के बादल छा गए,
अपने ही साये अजनबी सा लगने लगे,
मैंने सफ़ाई दी नहीं, तूने सुनी नहीं,
क्या यही कारण है दूर जाने का?
वक़्त की तेज़ रफ़्तार ने दूर कर दिया,
कभी जो पास था, वो अब पराया कर दिया,
हमने कोशिश की नहीं, राहें जुड़ी नहीं,
क्या यही कारण है दूर जाने का?
अहम की दीवारें उठती चली गईं,
नम्रता की बुनियादें गिरती चली गईं,
मैं झुका नहीं, तू भी बढ़ा नहीं,
क्या यही कारण है दूर जाने का?
स्वार्थ की छाँव में रिश्ते मुरझा गए,
अपनापन पीछे, मतलबी खेल आगे आ गए,
बस अपने में उलझे, परवाह की नहीं,
क्या यही कारण है दूर जाने का?
प्रतिस्पर्धा की चिंगारी आग बन गई,
तेरी मुस्कान भी मुझसे दूर लगने लगी,
तेरी ख़ुशी मेरी हार क्यों बनी?
क्या यही कारण है दूर जाने का?
निजी जीवन में दखल बढ़ता गया,
छोटी-छोटी बातें ज़हर बनता गया,
तूने सुना नहीं, मैंने समझाया नहीं,
क्या यही कारण है दूर जाने का?
दूरियां बढ़ीं, संवाद घटता गया,
संबंधों का दीपक धीरे-धीरे बुझता गया,
तेरा इंतज़ार किया, तूने आवाज़ नहीं दी,
क्या यही कारण है दूर जाने का?
विश्वास की नींव क्यों हिल गई?
सच्चाई के बावजूद दरार क्यों पड़ गई?
मैंने समर्पण किया, तूने परखा नहीं,
क्या यही कारण है दूर जाने का?
तीसरे के शब्द तलवार बन गए,
झूठे अफ़साने रिश्तों पर वार बन गए,
मैं सच बताता रहा, तूने यकीन नहीं किया,
क्या यही कारण है दूर जाने का?
छोटी गलतियाँ क्यों याद रहीं?
बड़े-बड़े लम्हे क्यों भूल गए?
दिल से दिल को जोड़ा नहीं,
क्या यही कारण है दूर जाने का?
दोस्ती तो इन सबसे ऊपर होती है,
न अहम, न स्वार्थ, न कोई मजबूरी,
पर तू बदल क्यों गया?
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महेश ओझा