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9 May 2024 · 1 min read

शालीनता की गणित

जो रात आज मैं रुक जाती
और कहो क्या कह पाते ?
दुशाला शालीनता की
क्या ओढ़े तुम रह पाते?

कितने सवाल, कितनी शंका,
याद है सीता मां और लंका?

काजल की उस कालिख को ,
बनने से पहले हि मिटा दें,
आओ हम तुम ये तय करलें
कितनी दूरी और बढ़ा लें?

कितनी सासें साथ में लेंगे ?
कितनी बार मिलेंगे खुलकर ?
कितनी दफा समा लोगे बाँहों में ?
दुनियादारी सब भूलकर!

कब – कब हम -तुम हंस पाएंगे ?
साथ में नीले नभ के नीचे,
कब निहारेंगे उदय होते सूरज को ?
बैठ किसी पर्वत के पीछेI

हमें तो कैसे भी जीना है !
हमें तो ऐसे ही जीना है !
रह मर्यादा की परिधि में
प्रेम की मदिरा को पीना है !

Language: Hindi
149 Views
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