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6 Apr 2024 · 1 min read

पहाड़ के गांव,एक गांव से पलायन पर मेरे भाव ,

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**पहाड़ के गांव**एक गांव से पलायन पर मेरे भाव —
पहाड़ के सुरम्य वादियों में
बसे पुरखों के गांव।
जहां झरने निरंतर
झरते हुए
जीवन धारा में
झंकृत निनाद करते हुए
स्मरण दिलाते हैं
यही है हमारे पुरखों के गांव।
अमिय बनकर वायु जहां
निरंतर प्राण वायु बनकर
हमें जीवंत रखती हैं।
अब वही वीरान पड़े आशियाना
खण्डहर होने की प्रतीक्षा में हैं।
भौतिक सुखों की लालसा?
रोजी रोटी की खोज?
अपने कुनबे की आधुनिक
परवरिश?
क्या ये सवाल नहीं हैं?
उजड़ रहे पुरखों के गांव??
विस्मय!
घोर विस्मय!!
कोई आ रहा पहाड़ से
मैदानों की ओर
कोई जा रहा पहाड़ों की ओर!!
आत्मिक सुख की खोज में
कब तक
मृग मरीचिका के भंवर जाल में
खोते रहेंगे??
चिंतित है, विस्मित हैं
पुरखों के गांव!!
**© मोहन पाण्डेय ‘भ्रमर ‘
दिनांक ५अप्रैल २०२४

Language: Hindi
233 Views

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