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15 May 2024 · 1 min read

तुम गए कहाँ हो 

तुम गए कहाँ हो?

तुम तो अब भी बसते हो मन में ।

जीवन के हर एक स्पंदन में ।

कलियों की कोमल छुअन में ।

टीसे उन कांटों की चुभन में।

दिन के उजली रोशनी में ।

भीगी रात की खामोशी में ।

पुतली बन बैठे इन आंखों में।

फूलों , पत्तियों ,खुशबु ,शाखों में।

पेड़ो की सरसराहट में।

कदमों की आहट में।

ओ रूह के वाशिंदे मेरे,

जीवन के चमकते सितारे।

तुम्ही हो प्रारब्ध तुम्हीं किनारे ।

डॉअमृता शुक्ला

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