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2 Feb 2024 · 1 min read

मुक्तक

शहरों के पार्क में न तो जुल्फों की छाँव में
मिलता अज़ब सुक़ून है आकर के गाँव में

लगता है कोई राग सुनाती हैं कोयलें
पाजेब जब छमकते हैं गोरी के पाँव में

प्रीतम श्रावस्तवी

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