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22 Feb 2024 · 1 min read

दहेज बना अभिशाप

किसने चलाया कहां पर दीना,इसकी हुई कब शुरुआत,
किसी राजघराने से ही होगा, जुड़ा हुआ इसका इतिहास।

अपनी शान शौकत में राजे जब कन्यादान किया करते,
हीरे मोती जवहारात भर, हाथी घोड़े दान दिया करते।

राज नवाबों के शोकों से अछूते नहीं रहे सामंत,
अहलकार फौजी प्यादो से, आगे बढ़ता रहे कुरंग।

आज जमाना ऐसा बन गया, बन गई प्रथा दहेज की मांग,
क्या अमीर क्या छोटा-मोटा, शादी में गूंजे दहेज का राग।

जिनके घर जन्मी कई-कई कन्या, पालन शिक्षा ही मुश्किल है,
वर पक्ष होता शादी को राजी, दुल्हन संग दहेज पहले ही निश्चित है।

क्षमता वाले तो ले देकर कन्यादान करा देते,
अधिक दहेज के फिर लालच में पत्नी को जिंदा जला देते।

निर्धन बाप की कन्याओं को, प्रथम तो कोई वर अपनाता नही,
कुछ वर्षो में कोर्ट कचहरी, तलाक से भी कतराता नहीं।

दोऊ तरफ़ा घर बर्बाद रहे, लड़की चाहती शादी से बचना,
कर्जा करके दहेज से शादी, बेहतर समझे पैरो पे उठना।

भ्रूण हत्या का चला प्रचलन, पुत्रो की आशाओं में,
मिटे समाज से दोनों कुरीति, जब नीति बदले शिक्षाओ में।।

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