दीपक का संघर्ष और प्रेरणा
तेल बाती का मेरा प्रिय साथ है,
संघर्ष करना मुझको तो दिन – रात है।
खुद में जलकर जग को रोशन कर रहा हूं,
धीर धरकर मन्द गति से चल रहा हूं।
अनल का यह ताप मुझको न सताता,
पथ दिखाना कर्म मेरा जग बताता।
किन्तु थकता कर्म करते मैं नहीं हूं,
क्योंकि – दीप हूं, मैं दीप हूं, मैं दीप हूं।।
मुझे नष्ट करना तीव्र वायु चाह रही है,
तम का वो विस्तार करती जा रही है।
मेघ गर्जन वृष्टि वायु इन सभीका वेग है,
स्थिर डटी है आज तो लो मेरी भी तेज है।
हरना मुझे संसार से यह अधंकार है,
मुझे सत्यता का करना ही विस्तार है।
तू क्या बुझायेगी मुझे बहती हवा,
ईश्वर मेरा रक्षक है ये दुनिया गवा।
किन्तु रहता घमंडों में मैं नहीं हूं –
क्योंकि – दीप हूं, मैं दीप हूं, में दीप हूं।।
सूर्य की रश्मि जहां नहीं पहुंच पाती,
चांदनी जहां चांद की भी हार जाती।
तम से लड़ने वहां हूं मैं पहुंच जाता,
भूले को हूं फिर मार्ग मैं नूतन बताता।
देव मन्दिर तीर्थ में जलता ही रहता,
सब के घर में रोशनी भी पूर्ण देता।
मुझको तो करना तेज का विस्तार है,
मुझे प्रेरणा से भंवर करना पार है।
कष्टों से लड़कर मैं कभी बुझता नहीं हूं –
क्योंकि – दीप हूं, मैं दीप हूं, मैं दीप हूं।।