Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
8 Nov 2016 · 6 min read

लोककवि रामचरन गुप्त के पूर्व में चीन-पाकिस्तान से भारत के हुए युद्ध के दौरान रचे गये युद्ध-गीत

कवि रमेशराज के पिता स्व. श्री ‘लोककवि रामचरन गुप्त ‘ का चर्चित ‘लोकगीत’—1.
|| पापी पाकिस्तान मान ||
—————————————————————-
ओ पापी मक्कार रे, गलै न तेरी दार रे
भारत माँ के वीर बाँकुरे करि दें पनियाढार रे।

करि लीनी है कौल हमने अपनौ कोल न तोडिंगे
पापी पाकिस्तान मान हम ऐसे फंद न छोडि़ंगे।
करि दें धूँआधार रे, परै न तेरी पार रे
भारत माँ के वीर बाँकुरे करि दें पनियाढार रे।।
लाशों पर हम लाश बिछायें करि दें खूँ के गारे हैं
आँच न आने दें भारत पै चलें भले ही आरे हैं।
जालिम अब की बार रे, ओंधै दिंगे डार रे
भारत माँ वीर बाँकुरे करि दें पनियाढ़ार रे।।

रणभूमि में कूद पड़े जब भारत माँ के छइया हैं
बड़े लड़इया बड़े लड़इया बांके वीर लड़इया हैं।
करि लै सोच-विचार रे, काटें तेरे वार रे
भारत माँ के वीर बाँकुरे करि दें पनियाढार रे।।

करै हमारी तरफ अंगुरिया वा अंगुरी कूं तोरिंगे
आंखि दिखावै जो भुट्टा-सी उन आंखिन कूं फोरिंगे।
रामचरन तलवार रे, मती बढ़ावै रार रे
भारत माँ के वीर बाँकुरे करि दें पनियाढार रे।
+लोककवि रामचरन गुप्त

कवि रमेशराज के पिता स्व. श्री ‘लोककवि रामचरन गुप्त ‘ का चर्चित ‘लोकगीत—2.
——————————————————————–
हम यमदूत भूत से तेरे प्राणों को लें छीन
जोर लगा लै चीनी गिनगिन इंच जमीन।

तेरा पल-पल होकर निर्बल बीतेगा
हमसे रण के बीच नीच क्या जीतेगा
थका-थका कर तोकूं मारें, करि दें हम गमगीन।।

तोरें हड्डी रोज कबड्डी खेलिंगे
तेरी चमड़ी फारे बीच उधेडिंगे
तेरे तोड़े गट्टे हिन्दुस्तानी पट्ठे चीन।।

पकरि लगाम धड़ाम जमीं पै डारिंगे
करि-करि मल्लयुद्ध हम तो कूं मारिंगे
अपने घोड़ों पै तू कसि लै चाहे जैसे जीन।।

रामचरन से युद्ध नहीं करि पावैगौ
मात अरे बदजात हमेशा खावैगौ,
टुकड़े-टुकड़े करि दें तेरे एक नहीं, दो-तीन।।
+लोककवि रामचरन गुप्त

कवि रमेशराज के पिता स्व. श्री ‘लोककवि रामचरन गुप्त ‘ का चर्चित ‘लोकगीत’—3.
|| मुश्किल है जाय चीनी तेरा जीना है ||
——————————————-
सीमा से तू बाहर हो जा ओ चीनी मक्कार
नहीं तेरी भारत डालैगौ मींग निकार।।

धोखौ तैने दियौ आक्रमण कीना है
मुश्किल है जाय चीनी तेरा जीना है,
मारि-मारि कें तेरौ करि दें पल में पनियाढ़ार।।

हम भारत के वीर तीर जब छोडि़ंगे
रणभूमी में तेरे सर को फोडि़ंगे
जिस दम कूदें राजस्थानी हुलिया देइं बिगार।।

भारत में गर कदम रखे, पछितायेगा
हम से लड़कर नफा नहीं तू पायेगा
नेफा औ’ लद्दाख के ऊपर क्यों करता तकरार।।

रामचरन से तू दुश्मन मत टकराना
रामचरन है देशभक्ति में दीवाना
रामचरन से चीनी तेरी परै न कबहू पार।।
+लोककवि रामचरन गुप्त

कवि रमेशराज के पिता स्व. श्री ‘लोककवि रामचरन गुप्त ‘ का चर्चित ‘लोकगीत’…4.
—————————————————————
रणभूमी के बीच में पल की करी न देर
उछलौ आकर युद्ध कूं बनकर दुश्मन शेर।

समझै बात न नीच,
भारत करि देय घुटुअन कीच
जम्बू-काश्मीर के बीच,
झण्डा लहरावै ||

टेंकन की भरमार,
अमरीका ते लये उधार
इतते हथगोलन की मार,
बदन तैरा थर्रावै ||

तोकू दूध पिलायौ
तू तौ उछल-उछल कें आयौ
डन्का रण के बीच बजायौ,
खूब तू गर्वाबै ||

मिलौ चीन से बन्दर,
भुट्टो अय्यूब कलन्दर
रामचरन कूं देख सिकन्दर,
अब तू झर्रावै ||
+लोककवि रामचरन गुप्त

कवि रमेशराज के पिता स्व. श्री ‘लोककवि रामचरन गुप्त ‘ का चर्चित ‘लोकगीत’—5.
|| रामचरन ते बैर अब लीनौ ||
[तर्ज-सपरी]
——————————-
चाउफ एन लाई चाल में कैसौ चतुर सुजान
होकर मद में मस्त तू रह्यौ भवौ को तान।

चाउ एन लाई बड़ौ कमीनौ भइया कैसी सपरी।।

हां लद्दाख आयकें जाने चौतरफा है घेरौ
होकर मद में चूर जंग कूं आय फटाफट हेरौ
सोतौ शेर जगाय तो दीनौ भइया कैसी सपरी।।

आस्तीन का सांप बना तू कैसी चाल दिखायी
मिलकर घात संग में कीनी तैनें बधिक कसाई
खंडित सब विश्वास करि दीनौ, भइया कैसी सपरी।।

खूनी उस चंगेज ने मुखड़ा तोड़ौ कैसौ तेरौ
अब भारत के वीरों ने तू चौतरफा है घेरौ
तेरौ चैन और सुख छीनौ, भइया कैसी सपरी।

और तेरी छाती पै चढ़कर मुहम्मद तुगलक आयौ
खैर मना ओ दुश्मन तैने नव जीवन तब पायौ
रामचरन ते बैर अब लीनौ, भइया कैसी सपरी।।
+लोककवि रामचरन गुप्त

कवि रमेशराज के पिता स्व. श्री ‘लोककवि रामचरन गुप्त ‘ का एक चर्चित ‘लोकगीत’—6.
|| रामचरन कोल्हू में पेलै ||
—————————–
ओ मिस्टर अय्यूब आग धधकी है सूख कंडी में
लहर-लहर लहराय तिरंगा अपना रावलपिंडी में।

है भारत की कट्टर सेना, मुश्किल इससे लोहा लेना
गाड़ैगी अपनौ झंडा यह पाकिस्तानी झण्डी में।

अमरीका को मीत बनाकर, बैठौ तू गोदी में जाकर
मगर तोय ना चैन मिलैगौ अमरीका पाखण्डी में।

रामचरन कोल्हू में पेलै, तेरौ चीया-चीया लै लै
अब देखिंगे तेल निकलतौ कित्तौ तेरी अन्डी में।
+लोककवि रामचरन गुप्त

कवि रमेशराज के पिता स्व. श्री ‘लोककवि रामचरन गुप्त ‘ का चर्चित ‘लोकगीत’—7.
|| रामचरन कब हारा है ||
——————————
भारत की उत्तर सीमा पर फिर तुमने ललकारा है
दूर हटो ऐ दुष्ट चीनिओ ! भारतवर्ष हमारा है।

हमें न समझो हैं हम कायर, वीरों की सन्तान हैं
मोम नहीं जो पिघल जायेंगे, हम भारी चट्टान हैं
भारत मां की रक्षा करना अब भी ध्येय हमारा है।

हम जब तनकर चलते हैं, रस्ते स्वयं निकलते हैं
गोली की बौछारों में हम, हंसते-गाते चलते हैं
अमन-दूत हर भारतवासी, पर अरि को अंगारा हैं ।

आओ डटो चीनिओ देखो कितना पानी हम में है
भगतसिंह सुखदेव राजगुरु भरी कहानी हम में है
हमको प्राणों से भी ज्यादा अपना भारत प्यारा है।

अपने खूं में राणा वाली अभी रवानी शेष है
वैसे ज्ञान-दान देने वाला ये भारत देश है।
चाहे जैसी आफत आये रामचरन कब हारा है।
+लोककवि रामचरन गुप्त

कवि रमेशराज के पिता स्व. श्री ‘लोक कवि रामचरन गुप्त’ का एक चर्चित ‘लोकगीत’–8.
|| आग पर घी रहेंगे परख लो ||
———————————————–
सर कटाये, न सर ये झुकाये
पीठ दिखला के भागे नहीं हम।
खून की होलियां हमने खेली
युद्ध में आके भागे नहीं हम।

इतना पहचान लो चीन वालो
दृष्टि हम पर बुरी अब न डालो
हम बारुद अंगार भी है
प्यार के सिर्फ धागे नहीं हम।

हम शेरों के दांतों की गिनती
खोल मुंह उनका करते रहे हैं
कोई कायर कहे या कि बुजदिल
जग में इतने अभागे नहीं हम।

एक ही गुण की पहचान वाला
कोई समझे न रामचरन को
आग पर घी रहेंगे परख लो
स्वर्ण पर ही सुहागे नहीं हम।
+लोककवि रामचरन गुप्त

कवि रमेशराज के पिता स्व. श्री ‘लोक कवि रामचरन गुप्त’ का चर्चित ‘लोकगीत’—9.
।। मिलायें तोय माटी में।।
———————————————————
एरे दुश्मन भारत पै मति ऐसे हल्ला बोल, मिलायें तोय माटी में।

माना पंचशीलता के हम पोषक-प्रेमपुजारी हैं
और शांति के अग्रदूत हम सहनशील अति भारी हैं
पर रै दुश्मन हाथी सौ मद कौ मारौ मत डोल, मिलायें तोय माटी में।

हम भारत के वीर तीर तकि-तकि के तो पै छोडि़ंगे
तोकूं चुनि-चुनि मारें तेरे अहंकार कूं तोडि़गे
एरे मुंह बन्दूकन के सीमा पै यूं मत खोल, मिलायें तोय माटी में।

पग-पग पापी पाक कूं नीचौ रामचरन दिखलावैगी
जाकूँ चीरें फाड़ें जो ये सोते शेर जगावैगी
एरे हमरे साहस कूं कम करिकें मत रे तोल, मिलायें तोय माटी में।
+लोककवि रामचरन गुप्त

कवि रमेशराज के पिता स्व. श्री ‘लोक कवि रामचरन गुप्त’ का चर्चित ‘लोकगीत’—10.
|| अरि कूं छरि दइयें ||
——————————————–
दुश्मन तेरे रक्त से हमें मिटानी प्यास
अब भी हैं कितने यहां सुन सुखदेव सुभाष।

सबके नयन सितारे
भगत सिंह से राजदुलारे
भारत में जब तक हैं प्यारे
अरि कूं छरि दइयें।

भरी भूमि वीरन से
डरपावै मति जंजीरन से
तेरी छाती को तीरन से
छलनी करि दइयें।

अगर युद्ध की ठानी
कहते रामचरन ऐलानी
दाल जैसौ तोकूं अभिमानी
पल में दरि दइयें।
+लोककवि रामचरन गुप्त

कवि रमेशराज के पिता स्व. श्री ‘लोक कवि रामचरन गुप्त’ का चर्चित ‘लोकगीत’—-11.
।। लड़ें हम डटि-डटि कें।।
—————————————-
पल भर में दे तोड़ हम दुश्मन के विषदंत
रहे दुष्ट को तेग हम, और मित्र को संत।

अरि के काटें कान
हम भारत के वीर जवान
न इतनौ बोदौ बैरी जान
अड़ें हम डटि-डटि कें।

हर सीना फौलाद
दुश्मन रखियो इतनी याद
मारौ हमने हर जल्लाद
लडें हम डटि-डटि कें।

अरे पाक ओ चीन
भूमी का लै जायगौ छीन
युद्ध की गौरव-कथा कमीन
गढ़ें हम डटि-डटि कें।

रामचरन कूं मान
हमारी ताकत कूं पहचान
फतह के जीवन-भर सोपान
चढ़ें हम डटि-डटि कें।
+लोककवि रामचरन गुप्त

कवि रमेशराज के पिता स्व. श्री ‘लोक कवि रामचरन गुप्त’ का चर्चित ‘मल्हार ’—-12.
।। लडि़ रहे वीर ।।
————————————
सावन आयौ, लायौ हमला चीन कौ जी
एजी सीमा पै लडि़ रहे वीर।

हारि न जावें, न भागें रण छोडि़ के जी
एजी वीरन कूं बध्इयो धीर ।

बादल छाये कारे कारे तौप के जी
एजी दुर्गन्धें भरी है समीर।

रामचरन कूँ कायर मति जानियो रे
ऐरे तोकू मारें तकि-तकि तीर।
+लोककवि रामचरन गुप्त

कवि रमेशराज के पिता स्व. श्री ‘लोक कवि रामचरन गुप्त’ का चर्चित ‘लोकगीत’—13.
।। कशमीर न मिले किसी को ।।
——————————————
अय्यूब काटत रंग है अमरीका के संग है
काश्मीर ना मिलै किसी को ये भारत का अंग है।

भारत भू ऊपर हम तो खूं की नदी बहा देंगे
काट-काट सर पाकिस्तानी रण के बीच गिरा देंगे
उठि-उठि होगी जंग है… काश्मीर ना मिले…..

मिलकर चाउफ एन लाई के कंजरकोट दबाया था
छोड़ छोड़कर भाजे रण से बिस्तर बगल दबाया था
भई बटालियन भंग है… काश्मीर न मिलै…

सरगोदा बर्की के ऊपर भूल गये चतुराई थे
तौबा तौबा करि के भागे देखे नहीं पिछाई थे
अब भी करि दें तंग है…काश्मीर ना मिलै….|
+लोककवि रामचरन गुप्त
—————————————————————-
सम्पर्क -15/109, ईसानगर, निकट थाना सासनीगेट, अलीगढ़-202001

Language: Hindi
Tag: गीत
479 Views

You may also like these posts

सूर्य देव
सूर्य देव
Bodhisatva kastooriya
यादों को दिल से मिटाने लगा है वो आजकल
यादों को दिल से मिटाने लगा है वो आजकल
कृष्णकांत गुर्जर
हर एकपल तेरी दया से माँ
हर एकपल तेरी दया से माँ
Basant Bhagawan Roy
मुक्तक
मुक्तक
sushil sarna
कल सबको पता चल जाएगा
कल सबको पता चल जाएगा
MSW Sunil SainiCENA
जग की आद्या शक्ति हे ,माता तुम्हें प्रणाम( कुंडलिया )
जग की आद्या शक्ति हे ,माता तुम्हें प्रणाम( कुंडलिया )
Ravi Prakash
इश्क
इश्क
SUNIL kumar
मानवता का है निशान ।
मानवता का है निशान ।
Buddha Prakash
कोई पढ़ ले न चेहरे की शिकन
कोई पढ़ ले न चेहरे की शिकन
Shweta Soni
दोहे
दोहे
Aruna Dogra Sharma
​जिंदगी के गिलास का  पानी
​जिंदगी के गिलास का पानी
Atul "Krishn"
भीड़ में वो खो गए
भीड़ में वो खो गए
प्रदीप कुमार गुप्ता
प्रथम दृष्ट्या प्यार
प्रथम दृष्ट्या प्यार
SURYA PRAKASH SHARMA
मज़हब की आइसक्रीम
मज़हब की आइसक्रीम
singh kunwar sarvendra vikram
23/122.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/122.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
तेरी सादगी
तेरी सादगी
Mandar Gangal
यहां बच्चे पैदा करने की योजना बना रहे पुरुषों के लिए कुछ सुझ
यहां बच्चे पैदा करने की योजना बना रहे पुरुषों के लिए कुछ सुझ
Urmil Suman(श्री)
!! गुजर जायेंगे दुःख के पल !!
!! गुजर जायेंगे दुःख के पल !!
जगदीश लववंशी
भूकंप
भूकंप
Kanchan Alok Malu
है नयन में आस प्यासी।
है नयन में आस प्यासी।
लक्ष्मी सिंह
■हरियाणा■
■हरियाणा■
*प्रणय*
"चुनाव के दौरान नेता गरीबों के घर खाने ही क्यों जाते हैं, गर
गुमनाम 'बाबा'
बसंत पंचमी
बसंत पंचमी
Neha
कहती नही मै ज्यादा ,
कहती नही मै ज्यादा ,
Neelu Tanwer
" बकरी "
Dr. Kishan tandon kranti
शरद पूर्णिमा - 2024
शरद पूर्णिमा - 2024
Raju Gajbhiye
गाती दुनिया मंगल गाथा, भारत देश महान की,।दिनांक -३१/१०/२३
गाती दुनिया मंगल गाथा, भारत देश महान की,।दिनांक -३१/१०/२३
अटल मुरादाबादी(ओज व व्यंग्य )
वो एक ही मुलाकात और साथ गुजारे कुछ लम्हें।
वो एक ही मुलाकात और साथ गुजारे कुछ लम्हें।
शिव प्रताप लोधी
दर्द
दर्द
Ashwini sharma
ब निगाहें करम मुस्कुरा दो तुम(नज़्म)
ब निगाहें करम मुस्कुरा दो तुम(नज़्म)
Dushyant Kumar Patel
Loading...