ऑनलाइन के जमाने में लिखता कौन है?

ऑनलाइन के जमाने में लिखता कौन है?
दिल की बातें अब कहता कौन है?
कीबोर्ड की टक-टक में खो गए जज़्बात,
स्याही से कागज़ सजाता कौन है?
पहले लिफाफों में छुपे थे अरमान,
अब ईमेल में हैं बस बेमानी बयान।
भावनाओं को इमोजी ने लपेटा,
वो हाथों से लिखने का सुख देता कौन है?
डायरी के पन्ने अब कोरे पड़े हैं,
हर ख्वाब स्क्रीन पर बंद पड़े हैं।
हाथों की लिखावट पहचान थी कभी,
अब उस निशानी को ढूंढता कौन है?
वो खत, वो चिट्ठियां, वो स्याही की खुशबू,
अब सब कुछ डिजिटल हो गया है रूख़।
ऑनलाइन की इस दौड़ में,
शब्दों को अपने छूता कौन है?
पर कहीं ना कहीं, कोई लिखता है अभी,
कोई दिल की बातें छुपाकर रखता है अभी।
स्याही की दुनिया यूं खत्म नहीं होगी,
क्योंकि लिखने वाला जिंदा है अभी।