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5 Feb 2024 · 6 min read

*पत्रिका समीक्षा*

पत्रिका समीक्षा
पत्रिका का नाम: अध्यात्म ज्योति
संपादक द्वय : 1) श्रीमती ज्ञान कुमारी अजीत, 61 टैगोर टाउन, इलाहाबाद 211002
फोन 99369 17406
2) डॉक्टर सुषमा श्रीवास्तव
एफ 9, सी ब्लॉक, तुल्सियानी एनक्लेव, 28 लाउदर रोड, इलाहाबाद 21 1002
फोन 9451 843915
प्रशासन की तिथि :अंक 3, वर्ष 57, प्रयागराज, सितंबर – दिसंबर 2023
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समीक्षक: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451
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सदैव की भॉंति अध्यात्म ज्योति उच्च कोटि के आध्यात्मिक लेखों से संपन्न है । संपादकीय उदयाचल शीर्षक से लिखा गया है। इसमें आध्यात्मिकता की परिभाषा संपादक सुषमा श्रीवास्तव द्वारा पाठकों तक पहुंचाई गई है। संपादक महोदया का कथन है कि व्यक्ति ब्रह्म का अंश है और उसका परमात्मा से संबंध ही आध्यात्मिकता है।
दूसरा लेख प्रदीप एच गोहिल का है। यह थियोसोफिकल सोसायटी की भारतीय शाखा के अध्यक्ष हैं। आगे की ओर एक कदम इनके द्वारा लिखा जाने वाला नियमित लेख होता है। इस बार इसमें विनम्रता के बारे में चर्चा है। लेखक ने बताया है कि विनम्रता के लिए बहुत अधिक आत्मज्ञान, आत्म नियंत्रण और आत्म सम्मान की आवश्यकता होती है।
महत्वपूर्ण लेख मनोरमा सक्सेना द्वारा अंतर्बोध शीर्षक से लिखा गया है। इसमे लेखिका ने अंतर्बोध की शक्तियों के बारे में चर्चा की है। लेखिका के अनुसार अंतर्बोध के माध्यम से व्यक्ति वस्तुओं के अंदर प्रवाहित जीवन से संपर्क स्थापित कर लेता है और सब जान लेता है। इसी को अंत:प्रज्ञा भी कहते हैं। अंतर्बोध के द्वारा व्यक्ति किसी व्यक्ति विशेष से तादात्म्य स्थापित करता है। और उसके भूत, वर्तमान और भविष्य को जान जाता है। लेख में में इस कार्य पद्धति को किसी अनोखे ढंग से संपादित होना बताया गया है। उदाहरणार्थ एक अमेरिकी महिला की चर्चा है जिसे महीनों पहले पता चल जाता था कि आने वाले किसी कार्यक्रम में किस स्थान पर किस रुप रंग वस्त्र से सुसज्जित व्यक्ति बैठेगा। लेखिका ने स्वयं कहा है कि यह आश्चर्यजनक है। अंतर्बोध जागृत करने के कई तरीके भी बताए गए हैं। एक तरीका जीवमात्र में एकात्मता की अनुभूति है। दूसरा हर परिस्थिति और संपूर्ण विश्व को व्यापक दृष्टिकोण से देखना है। तीसरा तरीका प्रकृति में वर्षा सर्दी गर्मी नदी पहाड़ आदि में ईश्वर की सत्ता का अनुभव करना है। चौथा उपाय अपने भीतर की किसी कला को विकसित करना भी हो सकता है। लेख आध्यात्मिक पथ के साधकों के लिए अत्यंत उपयोग की वस्तु है।
अध्यात्म ज्योति की संपादक श्रीमती ज्ञान कुमारी अजीत का एक लेख राधा जी इलाहाबाद में शीर्षक से चार प्रष्ठों में प्रकाशित हुआ है। इस लेख में राधा जी का स्मरण करते हुए एक प्रकार से थियोसोफिकल सोसाइटी का एक लंबा इतिहास ही लेखिका की कलम से लिखा गया है। सर्वविदित है कि राधा बर्नियर जी थियोसोफिकल सोसाइटी में भारत की और भारतीयता की एक चमकती हुई मिसाल कही जा सकती हैं । आपने 1980 से मृत्यु 2013 तक अर्थात 33 वर्ष तक थियोसोफिकल सोसायटी के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष का आसन सुशोभित किया। स्वयं आपके पिताजी एन. श्रीराम थियोसोफिकल सोसायटी के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष रहे हैं।
राधा बर्नियर जी से अपने पुराने संबंधों का स्मरण करते हुए ज्ञान कुमारी अजीत जी लिखती हैं कि एक जमाना था जब मुझे उत्तर प्रदेश थियोसोफिकल सोसायटी फेडरेशन का सचिव चुना गया था। उन्होंने राधा जी से फेडरेशन की अध्यक्षता करने का आग्रह किया, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। ज्ञान कुमारी अजीत जी की खुशी का ठिकाना न रहा। उसके बाद प्रयागराज में श्रीमती ज्ञान कुमारी अजीत जी ने राधा बर्नियर जी को आमंत्रित किया। उनका व्याख्यान हुआ। सब अतिथियों को कलश में गंगाजल और अमरूद के पौधे भेंट किए गए। ‘पंच महायज्ञ’ का सांस्कृतिक कार्यक्रम भी हुआ। राधा जी पंच महायज्ञ के कार्यक्रम का अंग्रेजी अनुवाद अपने साथ ले गई थीं ।राधा जी इसके बाद जब भी प्रयागराज आतीं तो आनंद लॉज के अध्यक्ष बी एन स्वरूप जी के घर पर ही ठहरीं। शुरुआत में उनको प्रयागराज के प्रसिद्ध होटल यात्रिक में ठहराया गया था लेकिन अगली सुबह ही वह अकेली रिक्शा पर बैठकर स्वरूप जी के घर चली गईं ।
बहुत सी स्मृतियॉं ज्ञान कुमारी अजीत जी ने पाठकों के साथ साझा की हैं। लखनऊ की मीटिंग थी। राधा जी और ज्ञान कुमारी अजीत जी एक साथ खाने की मेज पर बैठी थीं। राधा जी ने पूरी का एक टुकड़ा लिया और फिर पूछा “क्या रोटी मिल सकती है ?” जब रोटी आ गई तो उन्होंने अपनी तोड़ी हुई पूरी ज्ञान कुमारी जी की थाली में रख दी। बड़े प्यार से ज्ञान कुमारी जी ने उस पूरी को खाया था।
अड्यार में राधा बर्नियर जी के घर जब ज्ञान कुमारी अजीत जी गईं तो उसके पल भी उन्हें स्मरण आते हैं। वह लिखती हैं “वह प्यार भरा भोजन, हर कक्ष में ले जाना, वृक्ष का परिचय, हरहराती हुई समुद्र की आवाज, लहराता हुआ सागर ..वह सब कभी भूल नहीं सकी”.. उनके घर पर तुलसी का पौधा था जो श्रीमती ज्ञान कुमारी अजीत अपने साथ प्रयागराज ले आईं। वह आज भी है। उसे तुलसी के पौधे को आनंद लॉज के आंगन में जब भी देखती हैं, उन्हें राधा जी की याद आती है। अड्यार में राधा जी के आंगन के गोल चिकने पत्थर के टुकड़े वह अपने साथ प्रयागराज ले आई थीं ।जो आनंद संग्रहालय में रखे हुए हैं ।
एक बार अड्यार में राधा जी से ज्ञान कुमारी अजीत जी ने पूछा क्या आप साउथ इंडियन साड़ी नहीं पहनतीं ? तत्काल साउथ इंडियन साड़ी पहनकर राधा जी चली आई और बोली “यह मेरी मां की साड़ी है”
लेखिका ने यह रहस्य उद्घाटन भी किया है कि थियोस्फी में भले ही फूलों की माला पहनने की प्रथा नहीं हो, लेकिन राधा बर्नर जी ने हमेशा ज्ञान कुमारी जी द्वारा बनाई गई फूलों की माला को सहर्ष स्वीकार किया है।
राधा बर्नियर जी ने बाल साहित्य लिखने की प्रेरणा भी ज्ञान कुमारी अजीत जी को दी थी। फिलासफी का साहित्य भी दिया। उन्होंने ही लेखिका को बताया कि थियोस्फी की पहली हिंदी पत्रिका ‘विचार वाहन’ थी। एनी बेसेंट ने सागर ,मध्य प्रदेश में 28 अप्रैल 1894 को इसे आरंभ किया था। कर्नल ऑलकॉट के नेतृत्व में यह पत्रिका विचार वाहन के बाद धर्म संदेश और अब आध्यात्म ज्योति के रूप में थेओसोफि की प्रतिनिधि पत्रिका है।
एक बार राधा बर्नियर जी बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में पढ़ते हुए कॉलेज की लड़कियों के साथ विंध्यम फॉल देखने गई। झरने के पास अचानक ज्ञान कुमारी अजीत जी का पैर फिसल गया। राधा जी ने हाथ थाम लिया। इस तरह जीवन रक्षा हुई। यह सब यादें थी ।
बेसेंट एजुकेशनल फैलोशिप की सेक्रेटरी ज्ञान कुमारी अजीत जी बनीं और राधा जी उसकी अध्यक्ष रहीं ।तमाम यादों को समेटे हुए ज्ञान कुमारी अजीत जी लिखती हैं -“अंतिम बार उनसे मिलना लखनऊ फेडरेशन मीटिंग में हुआ। जाते समय अपनी कार से उतरकर उन्होंने मेरे आंसू पोंछे थे। यह आंसू ही शायद उनसे अंतिम मिलन के सूचक थे।”
लेख इतिहास की यादों को ताजा करने की दृष्टि से अत्यंत मार्मिक और महत्वपूर्ण है। इससे पता चलता है कि अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर पहुंचने वाली राधा बर्नियर जी कितनी सरल सहज और आत्मीयता से भरा हुआ व्यक्तित्व थीं ।
एक लेख एनी बेसेंट के बारे में है जिसमें उनकी गुह्य शक्तियों के बारे में चर्चा की गई है। यह सुषमा श्रीवास्तव ने लिखा है । गुह्य शक्तियों के बारे में सटीक जानकारी की कमी है। मैडम ब्लेवेट्स्की को उद्धृत करते हुए लेखिका लिखती हैं “गुह्य ज्ञान प्रकृति में दैवीय मन का अध्ययन है”
एनी बेसेंट को उद्धृत करते हुए वह कहती हैं “इस ब्रह्मांड में दृश्य जीवन और जीव जगत के पीछे जो अदृश्य ऊर्जा एवं शक्ति कार्य कर रही है उसको जानने की शक्ति गुह्य ज्ञानी में होती है” (पृष्ठ 27)
एनी बेसेंट में यह ज्ञान और गुह्य शक्ति थी। इसका उदाहरण देते हुए सुषमा श्रीवास्तव ने एनी बेसेंट की पुस्तक 1908 में लिखित ‘ऑकल्ट केमिस्ट्री’ का उदाहरण दिया है. यह उन्होंने लेड बीटर साहब के साथ मिलकर लिखी थी। आॅकल्ट केमिस्ट्री पुस्तक के बारे में भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर के निदेशक डॉ एम श्रीनिवासन को उद्धृत करते हुए लेखिका ने लिखा है कि ‘एनी बेसेंट में यह शक्ति थी कि वह परमाणुओं के विस्तृत स्वरूप का निरीक्षण करने के लिए परमाणुओं की गति को धीमी कर लेती थीं जिससे वह उनकी सही संरचना देख सकें।” एनी बेसेंट प्रकृति के विभिन्न देवताओं जैसे जल परियों, पृथ्वी के देवता आदि से भी मदद लेती थी( प्रष्ठ 29) लेखिका ने पाठकों को बताया है कि यह एनी बेसेंट ही थीं जिन्होंने जे कृष्णमूर्ति के चारों तरफ उनकी 12 वर्ष की अवस्था में ही एक चमकदार आभामंडल देख लिया था। गुह्य ज्ञान और अतीन्द्रिय शक्ति जैसे शब्द सदैव से मानव हृदय को रोमांचित करते रहे हैं। लेखिका ने गुह्य ज्ञानी एनी बेसेंट के बारे में प्रामाणिक रूप से जो जानकारियां पाठकों को उपलब्ध कराई हैं, वह बड़े काम की हैं ।
पत्रिका के अंत में विभिन्न थियोसोफिकल लॉजों की गतिविधियों का वर्णन है। पत्रिका के कवर पर प्रदीप एच गोहिल का सुंदर चित्र है जो थियोसोफिकल सोसायटी की भारतीय शाखा के अध्यक्ष हैं। पत्रिका के माध्यम से अध्यात्म के सही स्वरूप को इच्छुक जिज्ञासुओं तक पहुंचने के लिए संपादक द्वय बधाई की पात्र हैं।

Language: Hindi
139 Views
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