संक कॉस्ट ट्रैप और भारतीय छात्र: भ्रम और वास्तविकता
संक कॉस्ट ट्रैप या फॉलेसी (Sunk Cost Fallacy) एक ऐसी मानसिकता है, जो यह सोचने पर मजबूर कर देती है कि यदि हमने किसी कार्य में समय, प्रयास, या संसाधन लगा दिए हैं, तो उसे छोड़ना नुकसानदेह होगा। खासकर भारत में यह सोच छात्रों के बीच, विशेष रूप से प्रतियोगी परीक्षाओं या सरकारी नौकरी की तैयारी करने वालों में बहुत प्रचलित है। वे सालों-साल एक ही प्रयास में लगे रहते हैं, यह सोचकर कि इस बार हो जाएगा, अगली बार हो जाएगा।
हालांकि, उनके असफल होने के कई स्पष्ट कारण होते हैं—भ्रष्टाचार, पेपर लीक, धांधली, उचित अध्ययन सामग्री या शिक्षकों की कमी। कभी-कभी सामग्री, शिक्षक, या मार्गदर्शन उपलब्ध होने के बावजूद, छात्रों में विषय के प्रति रुचि का अभाव देखा जाता है। और कई बार तो यह परीक्षाएँ वास्तव में लोगों की वास्तविक योग्यताओं को परखने के लिए होती भी नहीं हैं। यह परीक्षाएँ मात्र एक ऐसा रास्ता होता है, जहाँ बिना विवाद के कुछ लोगों को चुना जा सके और उन्हें पदवी दी जा सके। जबकि उस कार्य से अक्सर ज्यादातर समय परीक्षाओं का कोई लेना देना नहीं होता।
लेकिन चूंकि यह एक दौड़ है और इसमें भाग लेने के लिए किसी विशेष योग्यता की आवश्यकता नहीं होती (और एक भ्रम पैदा होंजता है), लोग इस सोच से शामिल हो जाते हैं कि “सब कर रहे हैं, तो हमें भी करना चाहिए,” या “पड़ोसी का हो गया, तो मेरा भी हो जाएगा।” वे यह सोचकर खुद को सांत्वना देते रहते हैं कि बस थोड़ी और मेहनत करनी है, लेकिन हकीकत यह है कि ऐसा शायद ही कभी होता है। उदाहरण के लिए, आपके पास गायन का कौशल नहीं हैं लेकिन चूंकि इंडियन आइडल में सभी भाग ले सकते हैं इसलिए आपको भी लगता है कि क्या पता आपका भी चुनाव हो जाए।
क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसी भ्रांतियां, ऐसा भ्रम आपका सबसे कीमती साल बर्बाद कर देते हैं, जो आप किसी कौशल सीखने में लगा सकते थे? कौशल जीवन में सुगमता लाने का एक बड़ा कारक है, खासकर तब जब यह आपकी रुचि से जुड़ा हो। प्राचीन काल से ऐसी कई कहानियाँ हम सुनते आए हैं, जहाँ लोग अपनी रुचि और कौशल के लिए कठिन यात्राएँ तक करते थे। लेकिन आज यह प्रवृत्ति अमीरों के “चोंचले” या गरीबों के लिए “कोसों दूर की चीज़” मानी जाती है।
यह भी देखा गया है कि जो लोग किसी नौकरी में चयनित हो जाते हैं, वे उसमें सिर्फ इसलिए टिके रहते हैं क्योंकि वह धन देती है। लेकिन जिस काम में रुचि नहीं होती, उसमें न तो प्रदर्शन बेहतर होता है और न ही उससे जुड़े लोगों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसका सीधा असर समाज पर पड़ता है।
कौशल के साथ-साथ रुचि भी एक अहम कारक है। अक्सर लोग ऐसे काम में खुद को लगा देते हैं, जिनमें उनके पास उस क्षेत्र के प्रति रुचि या जुनून नहीं होता। बिना रुचि के आप कभी भी खुद को पर्याप्त रूप से प्रेरित नहीं कर पाएंगे। केवल घंटों की मेहनत या किताबें बदलने से बेहतर प्रदर्शन की गारंटी नहीं मिलती।
उदाहरण लीजिये, कई बार जब एक छात्र 10वीं-12वीं में अच्छा प्रदर्शन करता है, तो उसके अभिभावकों को लगता है कि अब वह डॉक्टर या इंजीनियर बनने के लिए पूरी तरह तैयार है। यह सोच प्रारंभ में छात्र को भी सही लग सकती है। लेकिन जब समय बीतने के साथ कार्य बोझिल और उबाऊ लगने लगता है, तब प्रेरणा का अभाव और असंतोष बढ़ने लगता है।
यह असंतोष फिर घुटन बन जाती है जिसका परिणाम समाज में गंभीर रूप से दिखाई देता है। लोग अपने जीवन मे गलत निर्णय लेने लगते हैं, और ऐसे गलत निर्णय न केवल उस व्यक्ति को जीवनभर के लिए हताश और अक्षम बना देते हैं (तो कभी वह जीवन ही नहीं रहता जिसके कारण इतनी जद्दोजहद की), बल्कि उनके आस-पास के लोगों पर भी नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। ऐसे लोग हर दिन खुद को हारा हुआ महसूस करते हैं।
यह समझना ज़रूरी है कि अपवाद हर जगह होते हैं। लेकिन क्या आप निश्चित रूप से कह सकते हैं कि आप उस अपवाद का हिस्सा हो सकते हैं? यदि इसका कोई ठोस प्रमाण नहीं दे सकते, तो यह कैसे सुनिश्चित होगा कि आपका चयन हो ही जाएगा? क्योंकि आपको यह तक पता नहीं होता कि जो परीक्षा आप दे रहे हैं वह आपकी विशेषता को परख भी रही है या नहीं। क्या पता आपके अंदर 10 विशेषताएँ हो जिसकी जगह कहीं और है लेकिन वह परीक्षा आपके उन 10 विशेषताओं में से किसी एक कि भी परख नहीं कर रही। तो इसके बजाय, क्यों न उस दिशा में प्रयास करें जो आपकी रुचि का हो, जहाँ आपको सहजता और आनंद महसूस हो? जिस कार्य में आपको स्वाभाविक रूप से खुशी और प्रेरणा मिलती हो, वही आपको असली सफलता दिला सकता है।
अपवाद यह भी है कि कुछ लोग हर चीज़ में रुचि ढूंढ लेते हैं। तो क्या आपमें वह क्षमता है कि आप किसी भी काम में खुद को ढाल सकें और उसमें खुश रहें? शायद हर कोई ऐसा नहीं कर सकता। इसीलिए यह हम देखते हैं ऐसा न होने पर कैसे हमारी पढ़ाई का असर हमारे काम पर पड़ता है, हमारे काम का असर हमारे परिवार और रिश्तों पर, और हमारे रिश्तों का असर हमारे काम पर असर डालता है।
हम अक्सर अपनी भावनाओं से इतने बंधे होते हैं कि हमें लगता है, ये भावनाएँ ही मंज़िल तक पहुँचाएँगी। लेकिन इन्हीं भावनाओं के कारण हम गलत निर्णय ले सकते हैं। जीवन में हर निर्णय केवल भावनाओं के आधार पर नहीं, बल्कि तर्क और यथार्थ के आधार पर लेना चाहिए। सही रास्ता वही है, जिसमें आपकी रुचि हो, जो आपको खुशी और आत्म-प्रेरणा प्रदान करे।
मैं यह दावा तो नहीं करता कि आप अपनी रुचि और ताकत के अनुसार जो भी करेंगे, उसमें अपार सफलता पाएँगे। लेकिन इतना तय है कि उस काम को करते हुए आप टूटेंगे नहीं। यदि हताशा भी होगी, तो भी उठ खड़े होने की आशा बनी रहेगी। शायद आपके कठिन समय में यही आपकी ताकत बने—आपकी रुचि और आपका कौशल।
इसलिए, जो मुझे सुनते हैं मैं उन्हें अपने और अन्य लोगों के अनुभव से हमेशा यह सलाह देता हूँ कि अपने जीवन में कोई एक रुचि ज़रूर रखें (जरूरी नहीं कि वह धनोपार्जन का हिस्सा हो), जो आपको बुरे समय में संभाले और आपके जीवन को सार्थक बनाए।