सदा बढ़ता है,वह 'नायक' अमल बन ताज ठुकराता।
जो नर-मन खुशमिजाजी का सुघड़ अंदाज बन जाता।
उसी जीवन में आनंदी भरा गुणराज आ जाता।
न जाने आगे-पीछे का, निरंतर आज में रहकर।
सदा बढ़ता है वह ‘नायक’ अमल बन ताज ठुकराता।
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पं बृजेश कुमार नायक
भारत गौरव
विद्या-सागर
प्रेम सागर
विद्यावाचस्पति
जालौन-रत्न
हिंदी सागर
✓इस मुक्तक को “नायक जी के मुक्तक” कृति में पढ़ा जा सकता है।
✓उक्त मुक्तक को “पं बृजेश कुमार नायक की चुनिंदा रचनाएं” कृति में भी पढ़ा जा सकता है।
✓”नायक जी के मुक्तक” और पं बृजेश कुमार नायक की चुनिंदा रचनाएं कृतियां साहित्यपीडिया पब्लिशिंग से प्रकाशित हैं और अमेजन- फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध है।