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11 Jan 2024 · 3 min read

*स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय श्री राम कुमार बजाज*

स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय श्री राम कुमार बजाज (जन्म 1915 ईसवी-मृत्यु 28 नवंबर 2003)
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लेखक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451
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भेंट वार्ता तिथि: 9 अप्रैल 2003
( यह लेख सहकारी युग हिंदी साप्ताहिक, रामपुर अंक 21 अप्रैल 2003 को प्रकाशित हो चुका है।)
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श्री राम कुमार बजाज स्वाधीनता आंदोलन की भावनाओं से आपूरित उन समर्पित कार्यकर्ताओं में से हैं जिन्हें महात्मा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस के महान संगठन ने निर्मित किया था।
श्री बजाज का जन्म वर्ष 1915 ईस्वी में रामपुर के एक प्रतिष्ठित व्यावसायिक परिवार में हुआ। यद्यपि औपचारिक रूप से तो यही कहा जाएगा कि उन्होंने व्यवसाय को अपनी आजीविका के साधन के रूप में अपनाया किंतु वास्तविकता यही है कि राष्ट्रीय भावनाओं में यह नि:स्वार्थ हृदय बाल्यावस्था से ही कुछ ऐसा रमा कि राष्ट्र निर्माण की प्रवृत्तियों के साथ सलंग्नता ही उनके जीवन का सुंदर पथ बन गया।
सन 1928 से श्री राम कुमार जी ने खादी पहनना आरंभ कर दिया था। उस समय उनकी आयु मात्र 13 वर्ष की थी। किशोरावस्था का भावुक हृदय एक बार जिस विचार के साथ जुड़ जाता है, उससे वह कभी छूट नहीं पाता। यही श्री राम कुमार जी के साथ भी हुआ। खादी सन 28 से पहनना शुरू की तो आज तक पहनते हैं।
” मगर एक फर्क आ गया है”- वह इन पंक्तियों के लेखक से कहते हैं- “जब हमने खादी पहनना शुरू की थी तो खादी पहनना बहुत गर्व की बात थी। हमें बहुत आत्माभिमान होता था। ऐसा लगता था कि देश की भावनाओं के साथ हम जुड़ रहे हैं। जबकि आज खादी के साथ कोई सम्मान की भावना नहीं रह गई है। बहुत से प्रकार के लोग भी खादी पहन रहे हैं।”
लेखक ने प्रश्न किया -“आप तो कांग्रेस के साथ स्वाधीनता के बहुत पूर्व से जुड़े रहे हैं। क्या कांग्रेस में कोई फर्क महसूस करते हैं ?”
इस पर रामकुमार जी कहते हैं-” हमारे जमाने की कांग्रेस और आज की कांग्रेस में बस नाम की ही समानता है। कांग्रेस के भीतर का त्याग, बलिदान, राष्ट्र के प्रति समर्पण का भाव सब कुछ जो हमारे युग में था, वह सब कुछ गायब हो गया है। उस जमाने में हम कांग्रेस को पच्चीस रुपए मासिक चंदा देते थे। यह हमारी भावनाओं की अभिव्यक्ति थी। उस जमाने में यह धनराशि बहुत बड़ी रकम मानी जाती थी। मगर हमारे अंदर की भावनाएं हमें इसके लिए प्रेरित करती थीं ।”
“आपको प्रेरणाऍं किस प्रकार मिलती थीं ? क्या गतिविधियां उस समय आपकी थीं ?”-यह लेखक का अगला प्रश्न था।
” देखिए हम जेल तो गए नहीं थे। बाहर रहकर ही आजादी की भावनाओं के साथ जुड़े रहे। जब सन छियालीस के आसपास नेहरू जी रामपुर से होकर गुजरे थे, तो हम सब लोगों ने मिलकर उन्हें इक्यावन हजार रुपए की थैली भेंट की थी। चंदे में किसी से भी इक्यावन रुपए से कम नहीं लिया था।”
” और कोई संस्मरण बताइए?”- हमने पूछा।
श्री राम कुमार जी यादों में खो गए। बोले-” जब महामना मदन मोहन मालवीय जी नवाब रामपुर से हिंदू विश्वविद्यालय के लिए चंदा मांगने आए थे, तो स्टेशन पर उनका स्वागत करने के लिए सिर्फ हम अपने चार-पांच साथियों के साथ पहुंच गए थे। हमें पता चला था कि मालवीय जी आ रहे हैं। तो हम लोग जो एक साथ सक्रिय रहते थे, उनका स्वागत करने गए थे।”
” किस तरह के कार्यकर्ताओं का आपका समूह था ?”- हमने प्रश्न किया।
” सब लोग बहुत अच्छे थे। ईमानदार, देशभक्त, राष्ट्र सेवी जन थे वे। किसी पर दाग-धब्बा नहीं था। यही हमारी पूंजी थी।”- उन्होंने कहा।
” राष्ट्र का निर्माण कैसे हो सकता है? आपको क्या लगता है?”- हमने अंतिम प्रश्न किया।
श्री राम कुमार जी का स्पष्ट उत्तर था-” भावनाएं शुद्ध पवित्र और नि:स्वार्थ हों तो सब कुछ हो सकता है।”
निस्संदेह श्री राम कुमार जी निर्मल अंतःकरण के ऐसे व्यक्ति हैं, जिनकी भावनाएं राष्ट्र के प्रति निर्माणकारी दृष्टि से ओत-प्रोत रही हैं ।यही पवित्र भावनाएं उनकी सबसे बड़ी पूंजी हैं।

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