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31 Dec 2023 · 1 min read

खुशी की खुशी

खुशी को खुशी से खुशी एक मिली थी,
मगर मुश्किलों में वो खोई कहीं थी।

ना साथी था कोई ना कोई सहारा,
कठिन इस नदी का न मिलता किनारा,

खुशी को खुशी जो खुशी से मिली थी,
वो इस जंग में कहीं खो सी गयी थी।

वो भटकी अचानक सम्भाली किसी ने,
वो गिरकर उठी या उठा ली किसी ने,

खुशी की खुशी इस भवर में फाँसी थी,
उधर ज़िन्दगी इम्तेहां ले रही थी।

अचानक कहीं से हवा एक चली थी,
वो सब कुछ समेटे उड़ा ले गयी थी।

छाया भी अपनी पराई हुई थी,
वो इतने ग़मों से सताई हुई थी।

वो आँधी कहीं आज थम सी गयी थी,
खुशी की खुशी जिसके संग उड़ चली थी।

अगले पल जो तूफ़ां हिम्मत का आया,
उसी में उदासी दफन हो गयी थी।

खुशी की खुशी जो खुशी से मिली थी,
वो वापस अभी तक भी लौटी नहीं थी।

जो हिम्मत का तूफान थोड़ा बढ़ाया,
वो खुशियों की बरसात संग लेके आया।

उसी में खुशी आज भीगी भली थी,
वो मंज़िल पे अपनी सही आ चुकी थी।

खुशी की खुशी फिर खुशी को मिली थी,
और खुशियों की आई फिर एक घड़ी थी।

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