ग़ज़ल
#वज़्न – 122 – 122 – 122 – 122
वहाँ क्यों रहे जब हिफाज़त नहीं है
वहाँ घर हमारा सलामत नहीं है/1
हक़ीक़त में तुमको मुहब्बत हुई है
जताते हो ऐसे हक़ीक़त नहीं है/2
भुला दें किसी की इनायत ज़िग़र से
यही इक हमारी तो आदत नहीं है/3
तुझे रूह से चाहते हैं सनम हम
कभी ये न कहना मुहब्बत नहीं है/4
मिटाकर किसी को जो शोहरत मिली हो
मिले दिल से उसको भी इज़्ज़त नही है/5
हँसी मत उड़ाया करो हर किसी की
शरारत है ये तो शराफ़त नहीं है/6
अगर कद में छोटा हुआ तो हुआ क्या
मगर सोचना मत लियाकत नहीं है/7
बड़े ताड़ में फूल जैसी ज़रा भी
कभी देखिएगा नफ़ासत नहीं है/8
दिखाते हैं वो नाज़ प्रीतम मुझे यूँ
उन्हें जैसे मेरी ज़रूरत नहीं है/9
#आर.एस. ‘प्रीतम’
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