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6 May 2024 · 1 min read

रातें

क्या, तुमने कभी पत्थर तोड़े है?
उस काली स्याह रात में
जिससे हम समझौता करते है
एक गहरी नींद में सोने का
या फिर एक ऐसा नाटक करते है
जैसे-हम सोए हो
कि फिर उठना नही है
अगली सुबह।

राते बड़ी तिलिस्मी होती है
आद‌मियों को नंंगा नचाती है
एक संगीत पर
शांत संगीत पर।

पीडाएँ उभरने लगती है
वासनाएं जाग्रत होने लगती है
बेचैनी बढ़ने लगती है
कुत्तों को गलियों में भूत नाचते हुए दिखने लगते हैं
चौराहों पर जादू-टोने, टोटके होने लगते हैं।

राते आश्चर्य और विस्मय से भारी होती है
इसमें हैरानी नहीं होनी चाहिए
सदियों से ऐसा चला आ रहा है।

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