Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
5 Mar 2023 · 1 min read

हो-ली अपनी होली

हो-ली अपनी होली

उद्धौ हो-ली अपनी होली।
शब्द-बाण से तिरिया बेधे,
बोल-बोल कर बोली।

हमको यह दो, हमको वह दो,
बोले बिटिया भोली।

हाय! हाट मैं जाऊँ कैसे?
खाली अपनी झोली।

झाल-मजीरा पीट रहे हैं,
झूम-झूम हम-जोली।

कहति कांति इस महँगाई में
ठठ्टा नहीं ठिठोली।
उद्धौ हो-ली अपनी होली।।

कविः
नन्दलाल सिंह ‘कांतिपति’
मो. 09919730863

Loading...