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21 Jul 2021 · 1 min read

$ग़ज़ल

2- बहरे कामिल मुसम्मन सालिम
मुतफ़ाइलुन×4
वज़्न/मीठर- 11212/11212/11212/11212

दिल मानता गर रूह की ग़लती कभी करता नहीं
दिन रात सब बनते हसीं दिल मौज़ ले डरता नहीं//1

हम भूल से खुद को भुला ग़म मोल ले भटके फिरें
कितना मिले मन भूख में फिर भी मग़र भरता नहीं//2

इस ओर भी उस ओर भी रब एक ही रहता सदा
मन भेद में समझे नहीं लड़ता रहे रुकता नहीं//3

हर आदमी फ़न एक तो रखता हसीं समझे अगर
समझे चला गर राह में उलटा क़दम रखता नहीं//4

हर मोड़ पर हर ज़िंदगी है तराशती हमको यहाँ
हम सीखते हर पल चलें यह सीखना थमता नहीं//5

आर.एस. ‘प्रीतम’
सर्वाधिकार सुरक्षित रचना

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