कुंडलिया
कुंडलिया
छलते हैं क्यों आजकल, व्याकुल मन को मीत ।
सिर्फ देह को भोगना, समझें अपनी जीत ।
समझें अपनी जीत , काम को जीवन कहते ।
छलनी करते देह , भोग में डूबे रहते ।
क्या समझें नादान , काम में तन मन जलते ।
मन में लेकर भूख , देह को लोभी छलते ।
सुशील सरना / 9-1-25