वर्षभर की प्रतीक्षा उपरान्त, दीपावली जब आती है,
वर्षभर की प्रतीक्षा उपरान्त, दीपावली जब आती है,
मन में दबी निराशाएं भी, आशाओं के दीप जलाती है।
कार्तिक मास की ये अमावस्या, अन्धकार को झुठलाती है,
दीपावली के दीयों से, स्याह रात्रि भी जगमगाती है।
भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का, अभिन्न हिस्सा ये कहलाती है,
समरसता, एकजुटता, और सौहाद्र का संदेशा भी सुनाती है।
राम जानकी के घर आगमन के, उल्लास को ये दर्शाती है,
वियोग के समापन पर ये, मिलन के गीत गुनगुनाती है।
दीपों की ये रौशनी घर हीं नहीं, वातावरण में भी रौशनी फैलाती है,
हृदय में रीसते नकारात्मकता से लड़ना भी सिखलाती है।
अपने-परायों का भेद भुला, सामाजिकता की मिठास बढ़ाती है,
एकजुटता की छत पर बिठा, आतिशबाजियों का लुफ्त उठाती है।
लक्ष्मी गणेश की श्रद्धा, घर-घर में शंख बजाती है,
रंगोलियों की दमकती आभा, चौखटों को सजाती है।
अन्धकार से प्रकाश की ओर, ये जीवन को ले जाती है,
अज्ञानता, असमानता और भेदभाव से ऊपर उठना सिखलाती है।
भौतिकता के जड़ में बसे, नैतिक मूल्यों को समझाती है,
प्रकाशपुंज की गरिमा, हर घर में अंश बन मुस्काती है।
वर्षभर की प्रतीक्षा उपरान्त, दीपावली जब आती है,
मन में दबी निराशाएं भी, आशाओं के दीप जलाती है।