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26 Jan 2018 · 1 min read

समस्याओ की जननी – जनसंख्या अति वृद्धि

दुनियां की भीड़ में , फसे जा रहे हम ,
पाने की ललक में , धकेले जा रहे हम।
कुछ उम्मीद बनी थी कि नीर मिलेगा ,
परंतु सुखी नदी से , वापिस आ रहे हम।।
सोचा था भोजन से, सबका पेट भरेगा,
धरती आँचल से , अब अमृत झरेगा।
घट रहे है वन उपवन, बंजर से हाल है,
कैसे सूखे मरुवन से, ये जीवन बचेगा।।
मानवता के हित में ये कैसी दौड़ है,
योजनाओं की झोली, ये खाली होड़ है।
ऊंट के मुंह में जीरा,ये लगते आंकड़े,
सिर्फ अस्तित्व बचाने का ये तोड़ है।।
सबको तनिक अब, जन जागना होगा,
जीवन से खिलवाड़ को टोकना होगा।
दोहन न हो धरती व वन्य जीवों का,
जनसंख्या अतिवृद्धि को रोकना होगा।।
खुशहाली आये और हट जाये संघर्ष,
सबको अपने हिस्से का मिल जाये हर्ष।
न हो लंबी लाइन, और डूबे नही बस्ती,
जनसंख्या नियंत्रण पर चले अब विमर्श।।
(रचनाकार-डॉ शिव ‘लहरी’)

Language: Hindi
2 Likes · 876 Views
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