गणतंत्र
छुप छुप कर वह रोया है !
क्या मालूम क्या खोया है !!
जिसने नींद चुराई थी !
मुंह ढंक कर वह सोया है !!
आसूं दिए सियासत ने !
लोकतंत्र को धोया है !!
शेर डरा है गीदड़ से !
स्वाभिमान को खोया है !!
तुम क्या दोगे भारत को !
तुम्हें देश ने ढोया है !!
नहीं आम तुम पाओगे !
जब बबूल को बोया है !!
रहते तो हो जाते शर्मशार !
तंत्र की अर्थी गण ने ढोया है !!
• विशाल शुक्ल