मंजिल नहीं जहां पर
गीतिका
~~~~
मंजिल नहीं जहां पर उस राह पग धरें क्यों।
सबका भला न जिसमें वह काम हम करें क्यों।
हम प्यार ही करेंगे सब दूरियां भुलाकर।
ये मूल्यवान आंसू यूं व्यर्थ में झरें क्यों।
आगे बढ़े कदम हैं कह दो नहीं रुकेंगे।
पथ मुश्किलों भरा है लेकिन कहो डरें क्यों।
बेकार की बहुत सी बातें यहां वहां हैं।
अब कष्ट हर दुखी के बोलो नहीं हरें क्यों।
हो भाग्यवान मानो जो मिल गई मुहब्बत।
धोखा नहीं हुआ है हम आह फिर भरें क्यों।
आगे समय बहुत है संभावनाएं’ अनगिन।
बीती हुई पुरानी हर बात अब स्मरें क्यों।
हर कष्ट हर तरह से हमने सहा खुशी से।
राहें किसी भरोसे सुविधा भरी वरें क्यों।
~~~~
-सुरेन्द्रपाल वैद्य