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19 Feb 2024 · 1 min read

ग़ज़ल

रात में भी ज़रा जगा कीजे ।
सुब्ह उठके उसे पढ़ा कीजे ।

खेल, मैदाँ में खेलना, लेकिन
थोड़ी घाटी कभी चढ़ा कीजे ।

भाव उसके ज़रा समझ,पढ़ के,
शे’र लफ़्जों में फिर कहा कीजे ।

हो रही दिल में ख़ूबसूरत, जो
वारदात – ए – मुलाहिज़ा कीजे ।

फूल,फल से भरा रहेगा दिल,
शाख जैसे भी तो झुका कीजे ।
०००
—- ईश्वर दयाल गोस्वामी ।

Language: Hindi
2 Likes · 115 Views
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