*थोड़ा समय नजदीक के हम, पुस्तकालय रोज जाऍं (गीत)*
मै ज़िन्दगी के उस दौर से गुज़र रहा हूँ जहाँ मेरे हालात और मै
समय को व्यर्थ नहीं गंवाना चाहिए, कुछ समय शोध में और कुछ समय
मैं तुम्हारे बारे में नहीं सोचूँ,
अगर मध्यस्थता हनुमान (परमार्थी) की हो तो बंदर (बाली)और दनुज
बेटियों को मुस्कुराने दिया करो
लहज़ा रख कर नर्म परिंदे..!!
छिपी हो जिसमें सजग संवेदना।
Pt. Brajesh Kumar Nayak / पं बृजेश कुमार नायक
ईमानदारी का इतिहास बनाना है
परिंदे भी वफ़ा की तलाश में फिरते हैं,
रिश्ते प्यार के
Dr. Akhilesh Baghel "Akhil"
बुंदेली चौकड़िया- पानी
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
#शून्य कलिप्रतिभा रचती है
वेदप्रकाश लाम्बा लाम्बा जी
जनहित में अगर उसका, कुछ काम नहीं होता।