लगा चोट गहरा
चुभ रही है नज़र में, तेरा मासूम चेहरा
है दीवानगी का, लगा चोट गहरा।
चल रही मेरे सीने में, यादें तुम्हारी
कहती धड़कन, है बढ़ती मोहब्बत हमारी
बढ़ी बेकरारी का, कैसा है पहरा।।
है दीवानगी……………………………..
क्यों दूर नींद चैन, तेरे बिन इस बदन से
क्या मिलेगी मोहब्बत, का सिला इस लगन से
तुझे देख चलती, है सांसों का लहरा।।
है दीवानगी………………………………
जीना जूझकर, आदतें बन गई है
रोया जी भर, सनम बस हसी रह गई है
देखना रह गया है, अब आलम सुनहरा।।
है दीवानगी……………………………….
✍️ बसंत भगवान राय