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2 Jan 2025 · 2 min read

#जंगल_डायरी_से_एक_नई_कथा :-

#जंगल_डायरी_से_एक_नई_कथा :-
😢 फिर वही तलाश…!!
[प्रणय प्रभात]
आराम-तलब और मुफ्तखोर भालू ने अपनी ज़मीन हाथी को सौंप दी थी। सौदा छह महीने तक खाने लायक़ उपज के बदले हुआ था। भालू ने ज़मीन सौंपने के एवज में एक अच्छी-खासी रक़म भी हाथी से ली। भूमिहीन लेकिन मेहनतकश हाथी ने उस ज़मीन पर खेती शुरू की। तमाम तरह की मुसीबतों से जूझते हाथी परिवार ने ऊबड़-खाबड़ ज़मीन को एक दिन खेती लायक़ बना दिया।
हाथी परिवार ने दिन-रात खून-पसीना एक कर मक्का की फसल तैयार की। कड़ी मेहनत रंग लाई और सारे खेत मे फ़सल लहलहा उठी। अब तक चुपचाप बैठे भालू ने लहलहाती फ़सल को वक्र-दृष्टि से देखा। देखते ही देखते उसकी नीयत और बिगड़ गई।
उसके शातिर दिमाग़ में लालच के बीज का अंकुरण हुआ। कुछ ही देर बाद भालू अपने परिवार को लेकर जंगल के राजा शेर की शरण मे था। चेहरे पर बनावटी दयनीयता के भाव, आंखों में घड़ियाली आँसू और लबों पर वही रटी-रटाई फरियाद। लगा दिया हाथी पर आरोप ज़मीन पर ज़बरन कब्ज़ा कर फसल उगाने का। अपने बाप-दादा की लीक पर चलते हुए।
हवाला जंगल के उस क़ानून का, दिया गया, जो उसे रटा हुआ था। जंगली क़ानून के तहत ज़मीन का उपयोग केवल उसका मालिक ही कर सकता था। ऊंचे टीले पर बैठे शेर और सभासदों को भालू की मक़्क़ारी पता थी। आख़िर वो एक ही तरह की गुहार के साथ दसवीं बार शिकायत लेकर आया था।
फिर भी तक़ाज़ा जंगल के सदियों पुराने क़ानूनो का था। शेर ने बाघ, चीता, तेंदुआ सहित अधीनस्थों को मौके की ओर रवाना किया। चंद घंटों की कार्रवाही ने महीनों की मेहनत पर पानी फेरते देरी नहीं लगाई। पूरी बेरहमी के साथ सारा खेत उजाड़ दिया गया। पकी-पकाई फसल जप्त कर ली गई। जिसका एक बड़ा हिस्सा नियमों के अनुसार भालू को मिलना तय था। हाथी को परिवार के सदस्यों के साथ हिरासत में ले लिया गया। उसके पक्ष को जानने की कोशिश तक नहीं की गई। उजाड़े गए खेत मे धूल उड़ाते हुए अमला कूच कर चुका था।
तमाम बोरियों में भरे भुट्टों को ललचाई निगाहों से ताकते भालू परिवार के चेहरे पर हमेशा की तरह धूर्तता भरी चमक थी। परिवार जी भर कर मक्का खाने के मंसूबे संजोने में जुटा था। परिवार का मुखिया भालू उजड़े हुए खेत का सौदा करने की मंशा से जंगल की सीमा की ओर चल पड़ा। उसे अब अगले ग्राहक की तलाश थी। जो अगले सीज़न के लिए उसकी ज़रूरतों को पूरी कर ख़ुद बरबाद हो सके।
😢😢😢😢😢😢😢😢😢
#कथ्य-
लगता है जंगल के क़ानून इंसानी दुनिया में भी अपना लिए गए हैं। जहां न मूर्ख हाथियों की कमी है, न शातिर भालुओं का टोटा। शेर और मातहतों को हक़ीक़त पता है मगर अन्याय हाथी-घोड़ों के साथ होना तय है। थोथे आदर्श व सियासी उदारवाद पर टिके अंधे क़ानून के कारण। ऐसे में धोखा देना और मौका भुनाना भालुओं का खानदानी हक़ क्यों न होगा? बाक़ी आप ख़ुद समझदार हैं। हाथी बनने से बचें।
●संपादक न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्य-प्रदेश)

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