‘प्रेम की राह’ पर -2
प्रागैतिहासिक काल में झण्ड पुरापाषाणकाल, मध्यपाषाणकाल,नवपाषाणकाल में कई जगह उतरी है।जिसमें झण्ड का व्याख्यान पुरातात्विक,साहित्यिक स्त्रोत, विदेशी यात्रियों के विवरण से कई जगह झण्ड उड़ाते हुए मिल जाता है।तो इसका मतलब यह नहीं है कि उस समय बाबा आदम का खानदान झण्ड उड़ाने में माहिर था, परन्तु उनकी उड़ी हुई झण्ड इतनी जटिल(कॉम्प्लिकेटेड) थी,कि उपसंहार में झण्ड ही बचती थी।और चीख कर कहती थी कि तुम जो इतरा कर मेरी झण्ड उतार रहे हो, मेरा योगदान इस झण्ड में इतना है कि कंगना वाली झण्ड भी विफल हो जाएगी।पत्थर,लोहा,ताँबा,काँसा का उत्तरोत्तर प्रयोग मेरी चोट की झण्ड से ही सीखा।और शिकार के लिए जरूरी काल के क्रम से हस्तकुठार, विदार्णी,गंडासा, चॉपिंग, वेधनी, छेदनी, खुरचनी, तक्षणी, ब्लेड और कुल्हाड़ी आदि का कुशलता से आविष्कार मेरी ही झण्ड का व्यापक उदाहरण है।पर इस कुल्हाडी ने इतने जंगलों को काट दिया कि इसने मेरी ही झण्ड उड़ा दी।यह एक ऐसी झण्ड है कि मैं शर्मसार हूँ।यह मेरी स्वादहीन झण्ड है।अरे चलो तुम्हारे लिए तो मैं महाझण्ड हूँ।और तुम्हें मेरी इस असीम झण्ड का एहसान मानना होगा।नहीं तो भिन्न-भिन्न स्थानों पर तुम्हारी झण्ड के झण्डे गाढूँगी और झण्ड का वंचक सिद्ध कर दूँगी।
द्विवेदीजी की लाली-(लाल सिंह से)गुप्त काल में झण्ड़ के पवित्र उदाहरण देने से पहले,एक-एक ठोस उदाहरण पुरापाषाणकाल, मध्यपाषाणकाल,नवपाषाणकाल का सजा दो वह भी सरल ढंग से।
लाल सिंह-(द्विवेदीजी की लाली से) वाह,तुम भी ऐतिहासिक हो गई हो। ऐं।तुम्हारी रुचि झण्ड में देखकर बेचारी झण्ड सकुचा गई है।बार-बार झण्ड में रुचि ठीक नहीं है तुम्हारी। यदि तुम्हारी आसक्ति झण्ड में रही तो जैसे जड़भरत की आसक्ति हिरण में रहने पर वह अगले जन्म में हिरण बन गए थे, ऐसे ही कहीं तुम्हारा जन्म झण्ड के रूप में न हो।फिर झण्ड तुम्हारा मजाक बनाएगी।देख लेना झण्ड की ऐसी ही वृत्ति है।। और फिर तुम्हरा नारी सशक्तिकरण का सपना वह तो झण्ड उड़ा लेगा।।तुम्ह भी यूट्यूब पर नारी सशक्तिकरण पर बल देते प्रभावशाली झण्ड का उदाहरण प्रस्तुत करती हो।और हाँ ऐसा भी हो सकता है कि झण्ड न बनकर झण्डा बन जाओ। फिर,न न झण्डा से आ हटा के झण्ड़ बन जाओगी।फिर वहीं कबूतर वाली थ्योरी कहाँ गई। उसमें तो प्यारी तुम भी दक्ष हो।ख़ैर,तुम्हारी झण्ड की माँग अब पूरी करता हूँ।और झण्ड शास्त्र में कुछ ऐतिहासिक झण्डों(झण्ड का झण्डों है यह समझे) को जोड़ने का प्रयास करता हूँ।
भीमबेटका,भोपाल के समीप में है, वह है पुरापाषाणकालीन स्थल,जहाँ के बाबा आदम के चेले-चपाटों अद्भुत कलाकारों ने अपनी झण्डात्मक बुद्धि से ,छैनी, हथौड़ा,कलम,रंग आदि जो कुछ भी हो, की झण्ड़रूपी चोट से चित्रित गुफाएँ, शैलाश्रय का निर्माण कर दिया।वह भी मानवीय दृढ़इच्छा शक्ति से।ऐसे झण्ड रुपी उदाहरणो से हमारे पूर्वज समझाते हैं कि कोई भी लक्ष्य बड़ा नहीं, जीता वही जो डरा नही। पर आधुनिक युवा को द्विवेदीजी की बालिका जैसी लड़कियाँ फँसाकर उनकी झण्ड उड़ा देती हैं।पर लाल सिंह बहुत समझदार है। तुम्हारे झण्ड के इंद्र जाल में फँसेगा नहीं। अरे वह तो झण्डों का राजा जो ठहरा। वह झण्ड के विष से महाविषैला है। झण्ड फुस्स हो जाएगी।
मध्य पाषाण काल में मध्यप्रदेश के आदमगढ़ और राजस्थान में बागोर में पशुपालन करते हुए झण्ड झण्ड उड़ा उड़ाकर खूब दूध का सेवन किया और अपनी झण्ड रूपी तंदरूस्ती बनाई।इस झंडीदार तंदरुस्ती के उदाहरण का नमूना शायद तुम्हारे झण्डदार शहर प्रताप गढ़ में सराय नाहर और महदहा नामक स्थान पर झण्ड उड़ाते हुए मानव का अस्थिपंजर भी मिल गया था।जो मानव के प्रथम अस्थि पंजर को झण्ड के रूप में स्वीकार कर लिया गया। (नव पाषाण काल की झंड काल उड़ायेंगे??????)समय का बहुत अभाव है।
©अभिषेक पाराशर