फागुन

दिन तो ढल गया है आ गई है मधुर रात,
हो न सकी मेरे पिया जी से मुलाकात।
(१)
लाल लाल आंखें हैं बहकी बहकी चाल,
अटपटाई है जुल्फे बिखरे बिखरे बाल।
आंखें उनिंदी सी लगे सोई न सारी रात।
हो न सकी मेरे पिया जी से मुलाकात।
(२)
महकी महकी है गलियां उड़ते रंग गुलाल,
फागुन के महीने में हुआ है बुरा हाल।
कोयलिया गाती है शाम और प्रभात।
हो न सकी मेरे पिया जी से मुलाकात।
*********
कवि-गजानंद डिगोनिया ‘जिज्ञासु’
भैरुंदा जिला सीहोर मध्य प्रदेश