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29 Apr 2017 · 5 min read

रमेशराज के वर्णिक छंद में मुक्तक

|| मुक्तक ||–1.
—————————————

थाने के सिपैयाजी की मूँछ को सलाम है
श्वान जैसी आदमी की पूँछ को सलाम है,
नेता अधिकारी चरें मक्खन-मलाइयाँ
जनता के पास बची छूँछ को सलाम है।
+रमेशराज

|| मुक्तक ||—2.
———————————

इठलाती-मुस्काती तोंद को प्रणाम है
भव्यता के गीत गाती तोंद को प्रणाम है,
जनता के सेवकों का कैसा है नमूना ये
कुर्सियों पै घूस खाती तोंद को प्रणाम है।
+रमेशराज

|| मुक्तक ||—-3.
———————————–

सत्ता के-व्यवस्था के जमाईजी की वन्दना
ताउओं के साथ-साथ ताईजी की वन्दना।
नित लाये पहनाये नेताजी को टोपियाँ
माला को सम्हाले ऐसे आई.जी. की वन्दना।
+रमेशराज

|| मुक्तक ||—-4.
———————————–

जिसके हों गुण्डे यार वन्दना के योग्य है
आज ऐसौ थानेदार वन्दना के योग्य है,
पक्ष या विपक्ष के नेताजी से पूछिए
सरकारी भ्रष्टाचार वन्दना के योग्य है?
+रमेशराज

|| मुक्तक ||—-5.
———————————–

दारू के गिलास, मधुशाला को नमन है
प्रेम से पिलाय ऐसी बाला को नमन है,
आदमी की ज़िन्दगी को मौत से मिलाय जो
बोतलों में पैक ऐसी हाला को नमन है।
+रमेशराज

|| मुक्तक ||—-6.
———————————–

मंच पै विराजमान कवियों को राम-राम
अंग-अंग रंग-भरी कलियों को राम-राम,
आदमी को गोदने में खेद नहीं भेद नहीं
चाकुओं के साथ ऐसी छुरियों को राम-राम।
+रमेशराज

|| मुक्तक ||—-7.
———————————–

रात के चकोरों-चितचोरों को सलाम है
मोरनी के साथ-साथ मोरों को सलाम है,
जिन्हें नहीं सुधि घरबार या वतन की
छोकरी-से ओखरी-से छोरों को सलाम है।
+रमेशराज

|| मुक्तक ||—-8.
———————————–

चित्तचोर चंचला चकोरियों की जय हो
गन्धभरी गर्वीली गोरियों की जय हो,
सरकारी नल में न एक बूँद जल है
खाली लोटा-बाल्टी-कमोरियों की जय हो।
+रमेशराज

|| मुक्तक ||—-9.
———————————–

दारू के समान भरी बोतलों की वन्दना
कूक-कूक दें जो हूक, कोयलों की वन्दना,
नारियों-कुमारियों को झोंक दें तँदूर में
करनी पड़ेगी ऐसे भी खलों की वन्दना।
+रमेशराज

|| मुक्तक ||—-10.
———————————–

गोटेदार सलवार कुर्तियों की वन्दना
रंगभरी हरी-हरी चूड़ियों की वन्दना,
गुस्से से भरी है सास मुद्दा है दहेज का
कैसे करूँ पैट्रोल-तीलियों की वन्दना!
+रमेशराज

|| मुक्तक ||—-11.
———————————–

नैना कजरारे-प्यारे वन्दना के योग्य हैं
गोरे-गोरे अंग सारे वन्दना के योग्य हैं।
पर व्यभिचारी-भारी लूट ले न लाज को
लाज के ये चन्दा-तारे वन्दना के योग्य हैं।
+रमेशराज

|| मुक्तक ||—-12.
———————————–

रस की गड़ेलियों की बार-बार वन्दना
गुड़ जैसी भेलियों की बार-बार वन्दना,
लाज को उतारि नारि हैरत में डालें जो
ऐसी अलबेलियों की बार-बार वन्दना।
+रमेशराज

|| मुक्तक ||—-13.
———————————–

डंकिनी-पिशाचिनी-चुड़ैलन की वन्दना।
पूड़ी-सी कचौड़ी-सी रखैलन की वन्दना।
घर में धवल नारि मन मारि सोवती
सैंयाजी करत अब गैलन की वन्दना।
+रमेशराज

|| मुक्तक ||—-14.
———————————–

कुर्सियों के जिन्न-भूत प्रेतन की वन्दना
जड़ के छदम रूप चेतन की वन्दना।
कबिरा यही तो आज गुरु के समान हैं
राम से भली है अब नेतन की वन्दना।
+रमेशराज

|| मुक्तक ||—-15.
———————————–

कुर्सी की चार टाँग वन्दना के योग्य हैं
राजनीति-भरे स्वाँग वन्दना के योग्य हैं,
मरने के इन्तजाम थैलियों में पैक हैं
बोतलें-धतूरे-भाँग वन्दना के योग्य हैं?
+रमेशराज

|| मुक्तक ||—-16.
———————————–

युद्ध में न हारे ऐसे वीर को सलाम है
मुण्डियाँ उतारे ऐसे वीर को सलाम है,
बार-बार गाल छरे भारी परे शत्रु पै
तीस-तीस मारे ऐसे वीर को सलाम है।
+रमेशराज

|| मुक्तक ||—-17.
———————————–
सेब-सी मिठास-भरी हीर को सलाम है
प्यारी फुलवारी कश्मीर को सलाम है,
रक्षा में खड़ा जो आज देश के मुकुट की
ऐसे शमशीर लिये वीर को सलाम है।
+रमेशराज

|| मुक्तक ||—-18.
———————————–

चाटनी पड़ेगी खाक बोल दे कमीन को
कर दें कलेजा चाक बोल दे कमीन को,
भूल से भी माँगे नहीं प्यारा कश्मीर ये
पाक की जमे न धाक बोलि दे कमीन को।
+रमेशराज

|| मुक्तक ||—-19.
———————————–

घाटियों के फूल-फूल वन्दना के योग्य हैं
वादियाँ जो कूल-कूल वन्दना के योग्य हैं,
शीतल समीर चले, ताप हरे मन का
कश्मीरी कन्द-मूल वन्दना के योग्य हैं।
+रमेशराज

|| मुक्तक ||—-20.
———————————–

आदि से तपस्या-लीन मुनियों की भूमि ये
डाल-डाल डोलती तितलियों की भूमि ये,
छलनी करें न वाण प्राण कश्मीर के
हिम-सी धवल परिपाटियों की भूमि ये।
+रमेशराज

|| मुक्तक ||—-21.
———————————–

सत्ता के नशे में तेरी एक भूल-चूक में
कोयल की कूक न बदल जाय हूक में,
देख आज भी न नेक हैं इरादे पाक के
साध् ले निशाना गोली डाल बन्दूक में।
+रमेशराज

|| मुक्तक ||—-22.
———————————–

प्यारी-प्यारी भारी-भारी सिल्लियों की वन्दना
लोमड़ी-सी चाल वाली बिल्लियों की वन्दना,
घर को निचोड़ें, फोड़ें गुलदस्ते-क्रॉकरी
खोपड़ी को तोड़ें ऐसी गिल्लियों की वन्दना।
+रमेशराज

|| मुक्तक ||—-23.
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मोरनी-सुयोगनी-सुबैनाजी की वन्दना
डाल-डाल डोले ऐसी मैनाजी की वन्दना,
एक में उजाला किंतु एक आँख बंद है
नाम है सुनैना ऐसी रैनाजी की वन्दना।
+रमेशराज

|| मुक्तक ||—-24.
———————————–

सूखी-सूखी तुलसी की डालियों की वन्दना
कामकाजी बासी घरवालियों की वन्दना,
सैंयाजी की ज़िन्दगी में आज भरी ताजगी
करें आधी रात अब सालियों की वन्दना।
+रमेशराज

|| मुक्तक ||—-25.
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रूप से अँगूरी पूरी छमियाँ की वन्दना
गदरायी खट्टी-खट्टी अमियाँ की वन्दना,
हाथ में बहेलिये के देख रही तीर है
थर-थर काँपती हिरनियाँ की वन्दना।
+रमेशराज

|| मुक्तक ||—-26.
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जूही-चम्पा-चाँदनी-चमेलियों की वन्दना
प्यार में शुमार अठखेलियों की वन्दना,
गोरी तो है भोरी छोरी समझै न बात को
सैंया करें गोरी की सहेलियों की वन्दना।
+रमेशराज

|| मुक्तक ||—-27.
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सुगति सुमति संग, सौम्यता सुवंत से
साध से सुकवि-सार, सोहे साँच सन्त से,
सुमन सुगन्ध साथ सब को सुलाभ दे
सफल सुसाधना सुरीति सद्अंत से।
+रमेशराज

|| मुक्तक ||—-28.
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दुसह दरद दाह देतु दुखियारी कूँ
कालिमा कपट कोटि कंचनकुमारी कूँ।
पीर को प्रसारे पल-पल पै पतित पति
आतुर अधीर अति अंध अँधियारी कूँ।
+रमेशराज

|| मुक्तक ||—-29.
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हीन हैं हमारे हाल, हास हू में हीलौ है
कबहू करै न काँय काल कोटि कीलौ है,
अधरन आह और आँसू अति आँख में
गात-गात गमगीन, गाल-गाल गीलौ है।
+रमेशराज

|| मुक्तक ||—-30.
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झाँकन के झंझावात, झरना न झील है
काया कुम्हलायी कहीं कंठ-कंल कील है।
नदी-नदी नीर न, न नारि नर नंद में
चपला-सी चाल चलै चाँद-चाँद चील है।
+रमेशराज

|| मुक्तक ||—-31.
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गमगीन गाँव-गाँव गुम गान-गीत हैं
पस्त-पस्त पेड़-पेड़, पात-पात पीत है,
हँसना हुआ हत्, हार-हार हाहाकार
भारत में भोर-भोर भारी भयभीत हैं।
+रमेशराज

|| मुक्तक ||—-32.
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काटेगी कुटिल क्रूर कंठ क्रान्तिबोध का
कायर कमीनी कौम ये करेगी क्रोध का,
गांधी-गौतमों के गीत गाय-गाय गर्व से
साथ देगी सत्यहीन शुद्ध अवरोध का।
+रमेशराज

|| मुक्तक ||—-33.
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सुमति सँवारि सोचि सोधि सुसंकेत कूँ
खाबै खल खलिहान खान खेत-खेत कूँ,
अन्तहीन अंधकार अमरीकी ओज में
पकरि पछारि पापी पश्चिम के प्रेत कूँ।
+रमेशराज

|| मुक्तक ||—-34.
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प्रज्वलित प्रीति-प्यास पीर नेंक-नेंक है
आज और अंतस अधीर नेंक-नेंक है,
मंद-मंद मुस्कान मुख पै मिलै न मधु
नीके नीके नारि नैन नीर नेंक-नेंक है।
+रमेशराज

|| मुक्तक ||—-35.
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बरफी इमरती जलेबियों की वन्दना
अधर मिठास भरी देवियों की वन्दना,
ऐसे रस-रूप को जो कोठों पै धकेलते
कैसे करूँ प्रेम के फरेबियों की वन्दना?
+रमेशराज

|| मुक्तक ||—-36.
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संतरे-सी फाँकन की बार-बार वन्दना
हिरनी-सी आँखन की बार-बार वन्दना,
हो न सका उपचार धन के अभाव में
टूटती उसाँसन की बार-बार वन्दना।
+रमेशराज

|| मुक्तक ||—-37.
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मस्त-मस्त मन वाले छोकरों को वन्दना
प्यार में दीवाने बने जोकरों की वन्दना,
आँखिन ते दीखै कम दम नहीं चाल में
मन से चलायमान डोकरों की वन्दना।
+रमेशराज
————————————————–
रमेशराज, 15/109, ईसानगर, निकट-थाना सासनीगेट, अलीगढ़-202001

Language: Hindi
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