कुम्भ स्नान -भोजपुरी श्रंखला – भाग – 1

गुड्डू के अम्मा के
दुखती रग दबौली ,
संगम नहाये वदे
उषा मन बनवली।
पांव गुड्डू के अम्मा
न भुइंहा पे धइली ,
चार दिन पहिले ऊ
नया कार लेहली।
यही देख उषा के मन
बात ई ऑयल ,
करि कुछ अइसन की
चले कुम्भ नहायल ।
बड़ी भीड़ सगरो
मचल चिल्लम चिल्ला ,
रेल में ठुँसात सब
जैसे कुत्तन के पिल्ला।
बहुत मांगे पैसा
मोटर कार वाले ,
गुड्डू के अम्मा
भइलिन दिलवाले।
उषा कहिन कि
चला मोर बहिनी ,
संगम नहवाई
रचिको संसय नहिनी।
संगम पजरवे
भैया मोर हहुअन
बढ़िया से हम सबके
कुम्भ नहवइयन।
अकशवा के पापा के
दोस्त एक हउअन
सच्चा जुगाडू
कसर नाहीं छोड़ियन ।
नन्दोई हमरो
पुलिसिये में हहुअन ,
स्पेशल स्नान
हमसबके करहियन।
गुड्डू के अम्मा
फुलवरी बन भइली ,
अइसन उषा अपने
जाले फसवली।
बिहाने हो बहिनी
ड्राइवर बुलाइब ,
हमउ तोहू चला
सामान गठियायिब।
नाही धिया रुका
परसो चलल जाई ,
पुनवासी स्नान के
पुण्य पावल जाई।
बीतत नाही दिन एको
बेचैन मन भइल ,
परसो को दिनवा
जल्दिये आ गइल।,,,,,,,,,,क्रमशः