तंग गलियों में मेरे सामने, तू आये ना कभी।
तंग गलियों में मेरे सामने, तू आये ना कभी,
धड़कनों के बढ़ते शोर को, सुन पाए ना कभी।
बारिशों का साथ लिए बरसते हैं जो दर्द मेरे,
दर्द की उस गहराई में, तू उतर पाए ना कभी।
सागर की लहरों से लड़ते, रेत के घरौंदे हैं मेरे,
आशियाने की उस टूटी आस को, तू समझ पाए ना कभी।
सैंकड़ों दीप जलते हैं, अँधेरी राहों में मेरे,
पर मेरी रौशनी की तलाश में, तू उलझ पाए ना कभी।
तूफां भी आकर भटकते हैं, डूबती नावों में मेरे,
साहिलों को पाने के उस टकराव में, तू डूबने पाए ना कभी।
एक दिन तारे की तरह टूटना है, किस्मत में मेरे,
क्षितिज मेरे एहसासों का, तू बन पाए ना कभी।
गिरते पत्तों का पतझड़ सिमटा है, बहारों में मेरे,
खुशबू फूलों की बन कर, तू ठहर पाए ना कभी।
पहचान खुद की भ्रमित करती है, आईने में मेरे,
मेरे भ्रम का वो शीशा, तू तोड़ पाए ना कभी।
वो कहानी जो ससंवाद बसती है, निगाहों में मेरे,
अतीत के उस पन्ने पर गढ़े शब्द, तू पढ़ पाए ना कभी।