“छन्द और मात्रा”
छन्द : छन्द के दो प्रकार होते हैं-
1. मात्रिक
2. वर्णिक
मात्रिक छन्दों में मात्राओं की गणना होती है और वर्णिक छन्दों में वर्णों की गणना होती है।
छन्द शास्त्र में गणों की संख्या 8 है। इसको जानने के लिए एक सरल और सर्वमान्य सूत्र है :
“यमाताराजभानसलगा”
तीन अक्षर का एक गण होता है। पहला गण है- “यगण”।
यगण में कितने लघु और गुरु होंगे। इसे जानने के लिए सूत्र देखिए :
य के आगे है-माता। यानी यगण में अक्षरों की अवस्थिति “यमाता” (122) होती है। इसी तरह अन्य गणों के लघु-गुरु क्रम को इस तरह समझें :
1. यगण- यमाता (122) भलाई, मनीषा
2. मगण- मातारा (222) बालाएँ, सालाना
3. तगण- ताराज (221) सागौन, संज्ञान
4. रगण- राजभा (212) भावना, देखना
5. जगण- जभान (121) जवान, दयालु
6. भगण- भानस (211) सावन, आँगन
7. नगण- नसल (111) नयन, पवन
8. सगण- सलगा (112) किसका, किरणें
टीप : अन्तिम के दो अक्षर ल – लघु और गा गुरु के द्योतक हैं। लेकिन गण 8 ही होते हैं।
मात्रा क्या है?
किसी ध्वनि के उच्चारण में जो काल (समय) लगता है, उसकी सबसे छोटी इकाई को मात्रा कहते हैं। हृस्व स्वरों (अ, इ, उ, ऋ) के उच्चारण में कम समय लगता है। अतः इसकी एक ( 1 ) मात्रा होती है।
आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ के उच्चारण में अधिक समय लगता है। अतः ये दीर्घ स्वर हैं। इसकी दो ( 2 ) मात्राएँ होती हैं।
हृस्व को लघु भी कहते हैं। ह्रस्व के लिए निर्धारित चिन्ह है-
( । या 1 )
दीर्घ को गुरु कहते हैं। दीर्घ के लिए निर्धारित चिन्ह है-
( s या 2)
डॉ.किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति