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29 Jun 2016 · 1 min read

घर बिना विशवास के चलता नहीं

घर बिना विशवास के चलता नहीं
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घर बिना विशवास के चलता नहीं
आजमाना अपनों को अच्छा नहीं

ज़िंदगी की तल्खियों के खौफ से
मुस्कुराता हूँ कभी डरता नहीं

छाँव राहत की ज़रा अब चाहिए
दिल ज़रा भी आंच अब सहता नहीं

नींद से दूरी बना ली रात ने
ख़्वाब उसको कोई अब भाता नहीं

ज़िंदगी क्या ज़िंदगी हो बेमजा
शौक जीने का अगर रहता नहीं

ढूंढ कर परछाइयाँ भी क्या करूँ
जो खुदा के घर गया मिलता नहीं

मौत ने आवाज दी मुझको मगर
ज़िंदगी ने हाथ पर छोड़ा नहीं
———————-

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