क्षितिज पर उदित एक सहर तक, पाँवों को लेकर जाना है,
क्षितिज पर उदित एक सहर तक, पाँवों को लेकर जाना है, भटकाव भरी गलियों में, भटक कर राहों को नयी पाना है। अन्धकार की तृष्णा में बेसुध हो पड़े थे,...
Hindi · Manisha Manjari · Manisha Manjari Hindi Poem · कविता · मनीषा मंजरी