कल्पित एक भोर पे आस टिकी थी, जिसकी ओस में तरुण कोपल जीवंत हुए।
रात्रि के गहन पहर में, गति श्वासों की मंद हुई, स्याह नयनों में मेघ थे छाये, आस के मोती स्वच्छंद हुए। जीवन के इस चंचल छल में, मृत्यु मस्त मलंग...
Poetry Writing Challenge-3 · कविता · मनीषा मंजरी