“आबादी की आंधी “
“आबादी का दोष कहें,या दोष है ये उन कर्मों का,
अपनों को हमने बाट दिया बाजार लगाकर धर्मों का,
निज धर्मों के विस्तार की आंधी में राष्ट्रहित पीछे छुटा,
नफ़रत के आवेश में घर अपनों का अपनों ने लूटा,
वंश वृद्धि होगी बेटों से वह मोक्ष द्वार पहुँचायेंगे,
ऐसी तुच्छ मानसिकता ने सबकी सोच को जकड़ लिया,
कहीं शुरू हुईं भ्रूण हत्याएँ, कहीं जनसंख्या ने विस्फोट का रूप पकड़ लिया,
आबादी ने दिन- प्रतिदिन,तेज़ी से विस्तार किया,
मानव दानव सा बन बैठा,वृक्षों का संहार किया,
सड़कें बन गयीं रैन बसेरा,जाने कितने कुलदीपक नितदिन सोए भूख़े पेट,
जंगल काट पशुओं का घर छीना नष्ट हुई प्रकृति की भेंट, सुख शांति भंग हुईं, हुआ ये घातक परिणाम,
प्राकृतिक आपदाओं के संकट से चहूँओर मचा कोहराम,
वृक्ष कटे, हुई हवाऐं दूषित सूखी नदियों की धारा, अभिलाषाओं की आग में जल रहा है देश हमारा,
चाइना सी आबादी कर ली,पर सीमित रोज़गार रहा,सुखी जीवन यापन करने से वंचित कई परिवार रहा,
देशद्रोह क्यों करते हो पथ छोड़ो बेशर्मों का,प्रकृति का सम्मान करो, पुण्य निहित इसमें सब धर्मों का”