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12 Feb 2024 · 1 min read

Ghazal

मुझे हाल ब्रह्म नज़र आ रहे हैं
जो महलों में कुमकुम नज़र आ रहे हैं

यह खुशियां मूरत्तब नहीं आरज़ी हैं हकी़कत में मातम नज़र आ रहे हैं

वो आंचल मुकद्दस जो थे रह गुज़र में बगा़वत के परचम नज़र आ रहे हैं

यह तफ़रीक़ कैसी है गंगो जमन में इधर तुम उधर हम नज़र आ रहे हैं

हम आपस की रंजिश में यूं बंट गए हैं सफे कुफ्र मुनज्ज़म नज़र आ रहे हैं

नहीं देखना चाहते अर्ज़ों गिरिया नजा़रे वो ता हम नज़र आ रहे हैं

जो झुकते नहीं थे वही सर थे ऐ शाह वही सर तो अब ख़म नज़र आ रहे हैं

शहाब उद्दीन शाह क़न्नौजी

शहाब उद्दीन शाह क़न्नौजी

Tag: Ghazal
1 Like · 129 Views
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