अखण्ड प्रेम की आस
जब कभी याद तुम्हारी आती है
तब नाम भी लेता हूॅं डर डर कर
फिर भी अब तक अपने दिल को
रखा है मैंने उम्मीदों से भर कर
सबसे छुप-छुपकर मिलने का
कब तक इस तरह चलेगा दौर
कहीं देखता ही न रह जाऊॅं मैं
तुम्हें लेकर चला जाएगा और
खुलकर कैसे बतलाएं लोगों को
बिना तुम्हारे रह भी नहीं सकता
साथ जीने की बात तो छोड़ो
अब अकेले मर भी नहीं सकता
ऐसा हमने क्या कर दिया है जो
हो गया है हमसे बहुत ही गुनाह
हमारे प्यार को क्यों लग गई है
सभी अपने लोगों की ही आह
चलो एक बार फिर कहीं से
करते हैं अपनी नई शुरुआत
डर डर कर अब अधिक नहीं
खुलकर रखते हैं अपनी बात
जो हो गया सो हो गया है अब
मुझे पूरा है अभी भी विश्वास
इससे नहीं टूटेगी फिर कभी
अपने अखण्ड प्रेम की आस