sp66 लखनऊ गजब का शहर
sp66 लखनऊ गजब का शहर
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लखनऊ गजब का शहर मिलता ओर छोर नहीं
जिसकी जगह ले सकता कोई शहर और नहीं
कल हजरतगंज में थी रौनक और आज भी है
और उसके पास ही तो एक नरही मोहल्ला और भी है
बीता था जहां बचपन वो दौर गजब का था
जीवंत सा लगता है लम्हों में अजब सा था
डिप्टी मेवा रामगंज नरही का अहाता था
बाजार से निकलकर कॉफी हाउस जाता था
दूकाने बहुत सारी और सब्जी मंडी भी थी
बाजार की ये खूबी सब कुछ मिल जाता था
हलवाई की दुकानें भी मशहूर वहां की हैं
वह दूध गरम हरदम कुल्हड़ में पिलाता था
मिलती थी मिठाई भी और गरम समोसे भी
घेवर के साथ-साथ मिलते थे गर्म अनरसे भी
दुकान पतंगों की निराली थी गजब रौनक
चरखी सद्दी और रील की थी गजब रौनक
कापीऔर किताबों की दुकान वहां पर थी
वो यार हमारा था जिसकी दुकान वहां पर थी
बस सड़क पार करलो कॉफी हाउस आ जाता
और डोसा खाने को मन अपना मचल जाता
फिर गंज का चक्कर भी सब यार लगाते थे
प्रिंस फिल्मीस्तान के सामने चौकड़ी जमाते थे
वह दिन जो चले गए वापस नहीं आने आएंगे
अपनी यह कविताएं लिखकर हम खुद को भरमाएंगे
पर मेरे यह नगमे दुनिया को सच बतलाएंगे
मेरा लखनऊ ऐसा मैंने देखा जैसा सामने लाएंगे
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डॉक्टर इंजीनियर
मनोज श्रीवास्तव
यह भी गायब वह भी गायब