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13 Oct 2024 · 1 min read

विजय कराने मानवता की

दस शीश और आँखें बीस
कहे बुराई हो गए तीस,
मारे फुफकारे अहंकार के
छिद्र नासिका सारे बीस,
आखों में नफरत का रक्त
मुख मदिरा और मद आसक्त,
कर्ण बधिर न सुने सुझाव
भाई भी हो जाए रिपु,
सिर चढ़ता जितना घमण्ड
उतना हो जाता उद्दण्ड,
पुण्य सभी हो जाते राख़
मिट जाती जन्मों की साख,
पाप पुण्य का भेद न जाने,
जब बढ़े शक्ति का बढ़ अभिमान,
बने मूढमति तब ज्ञानी रावण,
तब आगे आते श्रीराम,
विजय कराने मानवता की,
रावण-बध को खींच कमान।

(c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव “नील पदम्”

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Books from दीपक नील पदम् { Deepak Kumar Srivastava "Neel Padam" }
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