Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
26 Oct 2024 · 9 min read

सात शरीर और सात चक्र को जानने का सरल तरीके। लाभ और उद्देश्य। रविकेश झा।

नमस्कार दोस्तों कैसे हैं आप लोग आशा करते हैं कि आप सभी मित्र अच्छे और जागरूक होंगे। और लगातार जागरूक के तरफ बढ़ रहे होंगे। लगातार भाग दौड़ के जीवन में हम उथल पुथल होते रहते हैं, और हम चाहते रहते हैं की हमें खुशी मिलता रहे। लेकिन हम दुःख से भागते रहते हैं क्योंकि हमें सत्य पता ही नहीं होता और हम अपने जीवन को जटिल बनने में जोड़ देते रहते हैं। समझने के बजाय हम भागने और घृणा के तरफ बढ़ते रहते हैं। लेकिन बहुत ऐसे व्यक्ति भी हैं जो विभिन्न प्रकार के ज्ञान अर्जित करते रहते हैं ताकि जान सके लेकिन उनको भी उदासी ही मिलता है क्यों, क्योंकि वो पुस्तक मंत्र और भजन में सत्य खोजते रहते हैं और जो उनको बुद्धि और भावना को भा गया वो सत्य हो जाता है मैं कहता हूं बुद्धि और भावना को जानने के लिए और आप और कचरा को इकट्ठा करने में लगे हैं। आपको सत्य के लिए स्वयं के अंदर आना होगा साहब क्योंकि सब कुछ अंदर ही है हमें बाहरी कड़ियां और कचरा से मुक्त होना होगा ताकि असली हीरा अंदर मिल सके जो कभी खत्म नहीं हो सकता है।

हमें जागरूकता से मित्रता करना होगा ताकि सभी चीज़ में सहमति और स्पष्टता आ जाए और हम सब जागरूक होकर पूर्ण आनंद के तरफ बढ़े और घृणा क्रोध लोभ अहंकार और अति को रूपांतरण कर सके जिसका विपरित प्रेम करुणा विवेक और मैत्रेय के तरफ बढ़े जो हमारा असली स्वभाव है जिसे हम पहचानते तो है लेकिन अपना नहीं पाते। क्यों, क्योंकि हमें पता ही नहीं होता क्योंकि हम भी भागना नहीं सीखते जानना सिखाते हैं ताकि जान कर हम रूपांतरण कर सके। रूपांतरण होगा कैसे? रूपांतरण होगा देखने से जागरूकता से ध्यान से जानने से समर्पण से स्वयं को खोने से साहब। क्योंकि हम बाहर भी रहना चाहते हैं और भीतर भी इसीमें हम चूक कर देते हैं। या तो पहले आप बाहर का पूरा आनंद लेते रहे फिर आप अंदर आए। लेकिन एक दुविधा है कि हम बाहर से कैसे संतुष्ट हो जाऊ अति से कैसे बचें कैसे किसी से प्रेम करें ये सब प्रश्न मन में उठता होगा। मैं जबरदस्ती मानना कहता भी नहीं। हमें जागरूक होना होगा हमें स्वयं के स्वभाव और मन को जानना होगा मन के अलग- अलग भागों को जानना होगा एक ही उपाय है हमें स्वयं को विशिष्ट रूप से तोड़ना होगा फिर बाद में सब आकाश के तरह कवर कर लेगा। बस हमें जागरूकता बनाएं रखना होगा। बाहर जो हो रहा है उसके प्रति जागरूक कहां से विचार और भावना आ रहा है उसके प्रति शाक्षी भाव उसके प्रति बस गवाह बनना है न की लिप्त होना है। हमें जागरूक होकर स्वयं के अंदर आना होगा। अंदर कैसे आएं? उसके लिए आप हमारे पिछले पोस्ट लेख को आसानी से पढ़ सकते हैं। ताकि सभी बातों को आप जान सके। यदि अभी तक आप मेरा पिछला पोस्ट को नहीं पढ़े हैं फिर अवश्य पढ़े ताकि जागने में देर न हों। मैं ध्यान प्रेम भय करुणा विवेक जागरूकता आंतरिक विकाश और स्वयं की खोज पर कुछ पोस्ट लिखा हूं जो जाना हूं बस वही लिखने का प्रयास किया गया है। इस बात का भी ध्यान रखा गया है जिसे आप आसानी और सरल माध्यम से जान सके और निरंतर अभ्यास से स्वयं भी जाग उठे।

तो चलिए बात करते हैं आज 7 चक्र के बारे में ये 7 चक्र क्या है और इसे हम कैसे पहचाने और कैसे जागृत करें। हम प्रतिदिन जीवन जी रहे हैं और कुछ अच्छा और फायदेमंद और कुछ बुरा या दुख का भी अनुभव की चखते है। लेकिन ध्यानी कहते हैं की जब आप सभी चक्र को जान लेते हैं फिर एक ऐसा स्थिति आएगा जब न दुख मिलेगा न सुख बस शून्यता का दर्शन और आनंद संयुक्त हो जाता है। हमें अपने शरीर के साथ साथ अंदर की भी बात को जानना चाहिए और उत्सुक भी होना चाहिए ताकि हमें उत्साह मिलें हम शुरू में एक नया कामना को जन्म दे सकते हैं। जानना भी कामना ही हुआ, चलिए इतना कामना को आप पूर्ण करते ही हैं तो स्वयं के लिए एक और कामना करना चाहिए जिसे हम जान सके निष्काम भाव में उतर सके। सभी चक्र को ध्यान के माध्यम से जगा सके। लेकिन उसके लिए हमें ध्यान का अभ्यास करना होगा तभी हम जान सकते हैं। ध्यान में कोई शॉर्टकट नहीं होता भागना और मानना नहीं होता है बस जानना होता है। तक चलिए शुरू करते हैं 7 चक्र के बारे में। की सात चक्र क्या है और कैसे पहचान करें।

लोग अक्सर ध्यान और उपचार पद्धतियों में चक्रों के बारे में बात करते हैं। चक्र शरीर में ऊर्जा केंद्र हैं। प्रत्येक चक्र की एक अनूठी भूमिका होती है और यह हमारी भलाई को प्रभावित करता है। सात मुख्य चक्र हैं। वे रीढ़ के हड्डी के आधार से लेकर सिर के मुकुट तक चलते हैं। इन चक्रों को समझने में हमें अपनी ऊर्जा को संतुलित करने में मदद मिल सकती है। सात चक्र को जानने से हमारे अंदर सप्ष्टता आती है फिर हमें वास्तविक उद्देश्य दिखता है हम कुछ फिर सार्थक करना चाहते हैं। हम चाहते हैं की हम अपने पदार्थ यानी शरीर को ऊर्जा में और ऊर्जा से चैतन्य में रूपांतरण कर सकते हैं। लेकिन हम अंदर जाएं पहले हम इस शरीर को समझते हैं।

सात शरीर को समझना।

ध्यान के क्षेत्र में, सात शरीरों की अवधारणा एक गहन विषय है। ये शरीर हमारे अस्तित्व की विभिन्न परतों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस परत का अपना महत्व और कार्य होता है। इन परतों को समझने से हमें अपनी आध्यात्मिक यात्रा में गहराई से उतरने में मदद मिल सकती है।

सात शरीर केवल भौतिक नहीं हैं। इनमें सूक्ष्म और आध्यात्मिक पहलू शामिल हैं। ये परतें आपस में जुड़ी हुई हैं, जो हमारे विचारों भावनाओं और समग्र कल्याण को प्रभावित करता हैं। इन शरीरों की खोज करके, हम एक संतुलित और सामंजस्यपूर्ण जीवन प्राप्त कर सकते हैं। तो चलिए बात करते हैं सात शरीर के बारे में।

भौतिक शरीर।

पहला शरीर भौतिक शरीर है। यह हमारे अस्तित्व का सबसे मूर्त और दृश्यमान हिस्सा है। यह शरीर हमारी मांसपेशियां, हड्डियों का अंगो से बना है। इस शरीर की देखभाल करना हमारे समग्र स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है। इस शरीर को बनाए रखने के लिए नियमित व्यायाम, संतुलित आहार और उचित आराम महत्वपूर्ण हैं।

ईथरिक बॉडी।

दूसरा शरीर ईथरिक बॉडी है। यह शरीर ऊर्जा की एक परत है जो भौतिक शरीर को घेरती है। इसे अक्सर आभा के रूप में संद संदर्भित किया जाता है। ईथरिक बॉडी हमारी जीवन शक्ति और जीवन शक्ति के लिए जिम्मेदार है। योग और प्राणायाम जैसे अभ्यास इस शरीर को मजबूत बनाने में मदद करता है।

भावनात्मक शरीर।

तीसरा शरीर भावनात्मक शरीर है। यह परत हमारी भावनाओं से जुड़ी होती है। यह प्रभावित करती है कि हम परिस्थितियों पर कैसे प्रतिक्रिया करते हैं और दूसरों के साथ कैसे बातचीत करते हैं। ध्यान और जागरूकता हमें अपनी भावनाओं को बेहतर ढंग से प्रबंधित करने में मदद कर सकता है, जिससे हम अधिक शांतिपूर्ण जीवन जी सकते हैं।

मानसिक शरीर।

चौथा शरीर मानसिक शरीर है। यह शरीर हमारे विचारों और बुद्धि को नियंत्रित करता है। यह हमारे विश्वासों, दृष्टिकोणों और धारणाओं के लिए जिम्मेदार है। सकारात्मक सोच और मानसिक स्पष्टता का अभ्यास करके, हम इस शरीर को जानकर बढ़ा सकते हैं।

अध्यात्मिक शरीर।

शेष तीन शरीर सूक्ष्म, कारण और दिव्य शरीर हैं। ये परतें अधिक सूक्ष्म और आध्यात्मिक हैं। सूक्ष्म शरीर हमें हमारे सपनों और अंतज्ञान से जोड़ता है। कारण शरीर हमारे कर्म पैटर्न को धारण करता है। दिव्य शरीर उच्च स्व और सार्वभौमिक चेतना से हमारा संबध है।

ब्रह्मांडीय शरीर।

यह छठा शरीर है, जब हम सब कुछ जान लेते हैं और देख भी सकते हैं की सत्य है और ईश्वर भी है लेकिन यहां फिर भी दो है एक देखने वाला और एक दृश्य, लेकिन हम ब्रह्मांड से जुड़ जाते हैं देख सकते हैं की सत्य क्या है झूठ क्या है और आनंद क्या है लेकिन प्रश्न समाप्त हो सकता है लेकिन कुछ दृष्टा नहीं मिलता इसके लिए हमें सतवां शरीर में प्रवेश करना होता है।

निर्वाणिक शरीर।

यह एक अशरीरी अवस्था है, जिसका कोई रंग नहीं कोई नाम नहीं जो बस हो जाता है दिखता रहता है बस, एक निराकार अवस्था। यह अंतिम स्थिति है, केवल शून्यता ही शेष रह जाता है। दृष्टा बस बस देखने वाला बस शाक्षी बस देखते रहना जिसे हम मृत्यु भी कह सकते हैं। सब कुछ गायब हो जाता है, ब्रह्म भी नहीं बचता। कोई नहीं दृश्य बस दृष्टा बस देखने वाला शून्यता तो हमें एक शरीर पीछे तक दिखता है लेकिन सतवाँ शरीर तक आते आते हम बस दृष्टा हो जाते हैं बस देखने वाला शाक्षी भाव बस। सभी प्रश्न गायब विलीन हो जाता है। सभी चीज का अंत और शून्यता शुरू होता है।

अब बात करते हैं सात चक्र के बारे में मित्रो आशा करता हूं की आप लोग सात शरीर को समझ रहे होंगे अब बात करते हैं सात चक्र के बारे में।

सात शरीर या सप्त शरीर की अवधारणा मानव शरीर को सात अलग-अलग परतों या शरीरों में विभाजित करती हैं।

सात चक्र मानव शरीर में ऊर्जा के सात केंद्रों को संदर्भित करते हैं।

मूलाधार चक्र।

यह चक्र हमारे शरीर के निचले हिस्से में स्थित है और हमारी सुरक्षा, स्थिरता और जड़ो से जुड़ा होता है। मूल चक्र रीढ़ की हड्डी के आधार पर होता है। यह हमें धरती से जोड़ता है, यह चक्र हमें जमीन से जुड़ा और सुरक्षित महसूस करने में मदद करता है।

स्वाधिष्ठान चक्र।

यह चक्र हमारे शरीर के मध्य हिस्से में स्थित है और हमारी रचनात्मक, और भावनाओं और संबंधों से जुड़ा होता है। यह दूसरे के साथ हमारे संबंधों को भी नियंत्रित करता है। यह संतुलित स्वाधिष्ठान चक्र हमें स्वयं को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने की अनुमति देता है। यह हमें जीवन का आनंद लेने और स्वस्थ संबंध बनाने में मदद करता है।

मणिपुर चक्र।

यह चक्र हमारे शरीर के ऊपरी हिस्से में स्थित है और हमारी शक्ति, आत्मविश्वास और निर्णय लेने की क्षमता से जुड़ा होता है। यह व्यक्तिगत शक्ति का केंद्र है। यह चक्र हमारे आत्मसम्मान को प्रभावित करता है। जब संतुलित होता है, तो हम अपने जीवन पर नियंत्रण महसूस करते हैं। असंतुलन से आत्मसम्मान में कमी और अनिर्णय हो सकता है।

अनाहत चक्र।

यह चक्र हमारे हृदय में स्थित है हमारे प्रेम, करुणा और संबंधों से जुड़ा होता है। यह चक्र हमें प्रेम देने और प्राप्त करने में मदद करता है। संतुलित हृदय चक्र स्वास्थ्य संबंधों की ओर ले जाता है। यह हमें दूसरों को क्षमा करने और स्वीकार करने की अनुमति देता है।

विशुद्ध चक्र।

यह चक्र हमारे गले में स्थित है और हमारी अभिव्यक्ति, संचार और सत्य से जुड़ा हुआ होता है। इसमें आप सत्य बोल सकते हैं। जब संतुलित होता है, तो हम स्पष्ट रूप से संवाद करते हैं। हम दूसरों की बात को समझकर सुनते हैं। असंतुलन के कारण हम अनसुना महसूस कर सकते हैं।

आज्ञा चक्र।

यह चक्र हमारे माथे के बीच में स्थित है और हमारी बुद्धि खोजना जागरूकता और आत्मज्ञान से जुड़ा होता है। यह अंतज्ञान और अंतर्दृष्टि का केंद्र है। यह चक्र हमें भौतिक दुनिया से परे देखने में मदद करता है। संतुलित तीसरा नेत्र चक्र हमारी धारणा को बढ़ाता है। यह हमें अपने अंतज्ञान पर भरोसा करने और बुद्धिमानी से निर्णय लेने में मदद करता है।

सहस्त्रार चक्र।

यह चक्र हमारे सिर के ऊपरी हिस्से में स्थित है और हमारी आत्मा, ज्ञान और उच्च चेतना से जुड़ा होता है। यह चक्र हमारे आध्यात्मिक विकास को प्रभावित करता है। जब हम संतुलित करते हैं। हम ब्रह्मांड से जुड़ाव महसूस करते हैं। हम शांति और ज्ञान जा अनुभव करते हैं।

इन चक्रों को समझना और संतुलित करना हमारे शारीरिक और भावनात्मक स्वास्थ्य को बेहतर बना सकता है। नियमित ध्यान और आत्म-चिंतन हमें इस संतुलन को बनाए रखने में मदद कर सकता है।

ध्यान रहे बस हमें जागरूकता रखना होगा ताकि हम सभी चीजों को स्पष्टता से देख सके। यदि हम ध्यान नहीं करते फिर हमें यह अभी समझ नहीं आने वाला है हमें ध्यान का अभ्यास प्रतिदिन करना होगा। हमारे अंदर बहुत संभावना है बस हमें जागना होगा ताकि हम सभी चीजों को जान सके। हमें ये पोस्ट को समझने के लिए पहले ध्यान करना होगा। आप मेरे पिछले पोस्ट या कही दूसरे विडियो या पुस्तक के माध्यम से जानने और ध्यान करने की प्रयत्न करें ताकि सभी चीज़ को जानने में सक्षम हो सके। जागते रहे पढ़ते रहे ध्यान करते रहे और प्रेम की पथ पर चलते रहे।

धन्यवाद।
रविकेश झा।🙏🏻❤️

228 Views

You may also like these posts

तत्वहीन जीवन
तत्वहीन जीवन
Shyam Sundar Subramanian
बहाव संग ठहराव
बहाव संग ठहराव
Ritu Asooja
"चारों तरफ अश्लीलता फैली हुई है ll
पूर्वार्थ
“ भाषा की मृदुलता ”
“ भाषा की मृदुलता ”
DrLakshman Jha Parimal
The emotional me and my love
The emotional me and my love
Chaahat
हे मात भवानी...
हे मात भवानी...
डॉ.सीमा अग्रवाल
پھد ینگے
پھد ینگے
Dr fauzia Naseem shad
एक छोटी सी आश मेरे....!
एक छोटी सी आश मेरे....!
VEDANTA PATEL
*तू नहीं , तो  थी तेरी  याद सही*
*तू नहीं , तो थी तेरी याद सही*
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
बाल कविता: बंदर मामा चले सिनेमा
बाल कविता: बंदर मामा चले सिनेमा
Rajesh Kumar Arjun
किसी और के आंगन में
किसी और के आंगन में
Chitra Bisht
तुम भी कहो कि ख्वाबों में आओगे ना
तुम भी कहो कि ख्वाबों में आओगे ना
Jyoti Roshni
माँ -2
माँ -2
डॉ. दीपक बवेजा
गर्मी के दिन
गर्मी के दिन
जगदीश शर्मा सहज
महिला ने करवट बदली
महिला ने करवट बदली
C S Santoshi
"बैलगाड़ी"
Dr. Kishan tandon kranti
3568.💐 *पूर्णिका* 💐
3568.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
शब्दों की खेती
शब्दों की खेती
कुमार अविनाश 'केसर'
करवाचौथ
करवाचौथ
Dr Archana Gupta
फूलों की खुशबू सा है ये एहसास तेरा,
फूलों की खुशबू सा है ये एहसास तेरा,
अर्चना मुकेश मेहता
क़म्बख्त ये बेपरवाही कहीं उलझा ना दे मुझको,
क़म्बख्त ये बेपरवाही कहीं उलझा ना दे मुझको,
Ravi Betulwala
*भरत राम के पद अनुरागी (चौपाइयॉं)*
*भरत राम के पद अनुरागी (चौपाइयॉं)*
Ravi Prakash
दोहे- चरित्र
दोहे- चरित्र
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
कभी लगते थे, तेरे आवाज़ बहुत अच्छे
कभी लगते थे, तेरे आवाज़ बहुत अच्छे
Anand Kumar
आज फिर ....
आज फिर ....
sushil sarna
Adha's quote
Adha's quote
Adha Deshwal
मधुमक्खी
मधुमक्खी
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
#देख_लिया
#देख_लिया
*प्रणय*
काली हवा ( ये दिल्ली है मेरे यार...)
काली हवा ( ये दिल्ली है मेरे यार...)
Manju Singh
बिन मौसम.., बरसे हम।
बिन मौसम.., बरसे हम।
पंकज परिंदा
Loading...