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24 Nov 2016 · 1 min read

बंधन

बँधन

भँवरा देख मुसकराने लगा
कलियन से बतराने लगा
मृदु मुस्कान बिखेर
कुछ कुछ सकुचाने लगा
आ जाओ प्रिये
दिवस का अवसान हो चला
रात आँचल बिखेरती
आओ सिमट कुछ
शरारतें करें

कली समझाने यूँ लगी
देख भँवरे
मैं हूँ कोमल कान्त
अभी पट खोल फूल भी न बनी
जवानी की नादानी
हो सकती है मंहगी
मेरी कुमारिता को तोड़ सकती है

भँवरे तुम बौराये बादल हो
भटके भूले से खो जाते हो
किशोरावस्था की दहलीज में हो
मैं पावन गंगा की धारा
संसर्ग से मलिन हो जाऊँगी
विस्तार पा नये जीवन में
मैं आ जाऊँगी

वृक्ष तोड़ फेंक देगा मुझको
जीवन भर के लिए
नाता तोड़ देगा
दुहिता तो त्यागी जायेगी
जमाने से निगाहें चुरा जायेंगी
तेरा दामन साफ सुथरा
ही कहलायेगा

मैं हमेशा के लिए
ही ठुकरायी जाऊँगी
प्यार में नादानी अच्छी होती है
सीमा में हर चीज बँधी होती है
प्यार पाने का है नाम
स्वार्थ पिपासा करती है बदनाम

डॉ मधु त्रिवेदी

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