दौर बदल गया है प्रिय

दौर बदल गया है प्रिय
चाहते थे सब मुझे
मगर अब मुझे कोई भी चाहने वाला कोई नहीं
और इक मैं हूँ जो हररोज किसी नये को चाहता हूँ
~जितेन्द्र कुमार “सरकार”
दौर बदल गया है प्रिय
चाहते थे सब मुझे
मगर अब मुझे कोई भी चाहने वाला कोई नहीं
और इक मैं हूँ जो हररोज किसी नये को चाहता हूँ
~जितेन्द्र कुमार “सरकार”