दोहा सप्तक. . . . अपने
दोहा सप्तक. . . . अपने
अपनों से क्यों दुश्मनी, गैरों से क्यों प्यार ।
उचित नहीं संसार में, करना यह व्यवहार ।।
करे पीठ पर वार जो, उसको दुश्मन जान ।
आस्तीन के साँप की, एक यही पहचान ।।
अपने मीठे शहद से, इनकी खास मिठास ।
दिल को मिलता चैन सा, जब यह होते पास ।।
गैरों से मिलता नहीं, अपनों सा सद्भाव ।
कटुता के देना नहीं, उनके दिल को घाव ।।
रिश्ते नाजुक काँच से, रखना जरा संभाल ।
मनमुटाव की आँच से, जले प्यार की डाल ।।
सहनशीलता है जहाँ, मिलता वहाँ मिठास ।
रिश्तों में अच्छी नहीं, लगती कभी खटास ।।
शाबाशी की थपकियाँ, सच्ची सी आशीष ।
अपनों के ही प्यार में, खिलते पुष्प शिरीष ।।
सुशील सरना / 13-4-25