#हिंदी_ग़ज़ल

#हिंदी_ग़ज़ल
■ इक मंथरा चाहिए…..
【प्रणय प्रभात】
● साथ देवी नहीं अप्सरा चाहिए।
पाप का घट हमेशा भरा चाहिए।।
● राज रानी बने ना कोई जानकी।
हर मोहल्ले को इक मंथरा चाहिए।।
● जो हैं सावन के अंधे उन्हें हर तरफ़।
बस हरा बस हरा बस हरा चाहिए।।
● धार हो या नहीं भोंथरा ही सही।
बाण बस हर धनुष पर धरा चाहिए।।
● जिनके चंगुल में हैं स्वर्ण की नगरियां।
आज उनको अलग कन्दरा चाहिए।।
● दंडकारण्य में फिर असुर राज हो।
यज्ञकर्ता, उपासक डरा चाहिए।।
● सत्य पर्दे में हो, भ्रम सुरक्षित रहे।
न्याय मुर्दा नहीं अधमरा चाहिए।।
● कल प्रसूता रही, आज हो पेट से।
फिर भी धरती सदा उर्वरा चाहिए।।
● बाप मां से अलग हो नगर में रहे
आज गौरी को वो सांवरा चाहिए।।
● जो पुजारी स्वयं को बताते यहां।
उनको हर देवता बावरा चाहिए।।
■संपादक■
न्यूज़&व्यूज (मप्र)